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संस्कार (लघुकथा )

संस्कार 
********
महीमा जी पर बहू  को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय में चल रहा था . 
आज एक महत्वपूर्ण गवाही थी . 
श्रीमती उषाकिरण ने अपनी गवाही में बताया -
महीमा जी मेरी बहू  की माँ है और मै अपनी बहू  को बेटी की तरह रखती हूँ . 
इनकी बेटी भी मुझे माँ से कहीं बढ़कर स्नेह देती  है. 
जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार 
बना सकती है !!!!
बातों में दम था . 
विद्वान न्यायमूर्ति  ने महीमा जी को निर्दोष बरी कर दिया … 
---------------------------------------------------------------------------
अविनाश बागडे 
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 490

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 10:33am

शुभ हो..

आपको बधाई आदरणीय.

Comment by Vindu Babu on August 17, 2013 at 10:52am
आदरणीय बहुत कम शब्दों में बहुत महत्वपूर्ण बात प्रस्तुत की है।
वास्तव में संस्कारों की जड़ें बहुत गहराई तक होती हैं,जैसा कि आपकी कहानी से ही सुस्पष्ट है।
सादर बधाई स्वीकारें इस सफल लघु-कथा के लिए।
Comment by AVINASH S BAGDE on August 16, 2013 at 7:48pm

कोई न्यायमूर्ति आज भी महाराज विक्रमादित्य की तरह न्याय करें..लगभग अविश्वसनीय डॉ.प्राची जी। 

Comment by AVINASH S BAGDE on August 16, 2013 at 7:46pm

सम्बन्धों पर विश्वास की बातों ने एक सकारात्मक उर्जा का संचार किया है-Shubhranshu Pandey ji

संस्कार ही तो है जो समाज का निर्माण करते है .... देश को इनकी जरूरत है- aman kumar ji

aabhari hu..

Comment by AVINASH S BAGDE on August 16, 2013 at 7:44pm

डॉ प्राची जी...( आश्चर्य होता है.) ,वीनस केसरी जी ...(अब अच्छी बातें हैरान करती हैं),

यह एक सत्य घटना पर आधारित लघुकथा है। । सभी पात्र दिल्ली में मौजूद हैं। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2013 at 5:23pm

बहुत सुन्दर लघुकथा आ० अविनाश बागडे जी..

//जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार 
बना सकती है//... बात में सचमुच दम है 
कोई न्यायमूर्ति आज भी महाराज विक्रमादित्य की तरह न्याय करें...जान आश्चर्य होता है.
इस सशक्त लघुकथा के लिय हार्दिक बधाई 
Comment by वीनस केसरी on August 15, 2013 at 3:16am

बातों में दम था .......

निश्चित ही ... रिश्तों से उठते विश्वास के दौर में ऐसा होना किसी चमत्कार सरीखा लगता है ... उफ़ ये क्या सोचने को मजबूर हैं हम
अब अच्छी बातें हैरान करती हैं

Comment by Shubhranshu Pandey on August 14, 2013 at 9:20pm

आ. अविनाश जी, एक सशक्त कहानी. जहाँ आज सभी, यहाँ तक कि न्यायालय भी ,माफ़ करियेगा, पारिवारिक सम्बन्धों को व्यापार समझ कर आर्थिक लेन देन की नजरिये से देखता है. वहाँ सम्बन्धों पर विश्वास की बातों ने एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया है. 

सादर

Comment by aman kumar on August 14, 2013 at 12:23pm

मानवीय दर्शन शास्त्र ..........का अदभुत सयोंजन !

जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार 
बना सकती है !!!!
संस्कार ही तो है जो समाज का निर्माण करते है .... देश को इनकी जरूरत है |
समाज को आइना दिखाने के लिए 
आभार 

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