For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब जब नये फूल आते |

आती है जब ग़म की आँधी  , डूबता खुशी का किनारा | 
मंजिल पाने की चाहत में , कोई जीता या हारा |
कुछ सोचें कुछ हो जाता है , मारा जाता है बेचारा |
हार जीत के लालच  में  ही , बस दौड़े ये जग सारा |
समय चक्र चलता रहता है , फूल खिलें मुरझा जाते |
रोज नये पौधे उगते हैं , कुछ  रोज कुम्हला जाते | 
टूट गिरें कितनी ही डाली  , जब जब नये फूल आते | 
देख देख ये दुनिया वाले , ग़म में ही अश्क बहाते |
सब कुछ ऊपर वाला करता , ठोकर लगना बहाना है | 
किसी के माथ पर जो गुजरा , गैरों को अफसाना है | 
कभी कहीं खुशी कहीं ग़म है , जहाँ में मुस्कराना है |
राजा या रंक बसे जग में ,  पूरे दिन उड़ जाना है |  
रो धो कर काम नहीं चलता , ना दिल हाल  सुनाने से |
दीपक जो  जलता रहता है ,  डरता है  बुझ जाने से |
कोई भी धर्म अपनाओ , जाना किसी बहाने से | 
वर्मा माया के नगरी में , डर है सब को  जाने से |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 503

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on August 12, 2013 at 2:53pm

आदरणीय ,

हम अपने इस रचना में कमियों को जानना चाहते हैं , एक बार आप के राय की अपेक्षा है |

आपकी  राय सदा ही सिरोधार्य है |
बहुत बहुत धन्यवाद
सादर ,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 12, 2013 at 1:12pm

क्या आप इसे कम समझते हैं कि बावज़ूद इतनी कमियों के आपका संप्रेषण इस मंच पर स्थान पाता है ?

आदरणीय,  यदि अपनी रचना को छंदबद्ध करने के प्रयास में इसे ताटंक छंद के विधान परआपने कसना चाहा है तो आपका स्वागत है. लेकिन, बिना स्वयं संतुष्ट हुए इसे क्यों पोस्ट किया आपने, यह मेरी समझ में अभी तक नहीं आया ? आपकी प्रस्तुत रचना किसी तौर पर ताटंक के विधान को नहीं मानती. तभी हमने इसे चौपाई के करीब का समझा था. वैसे चौपाई के तौर पर भी यह कमतर ही है.

आप छंदमुक्त गेय कविता ही लिखे होते, सरजी.  हम पाठकों पर आपका महती उपकार होता.

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on August 12, 2013 at 9:58am

आदरणीय सौरभ जी
प्रणाम ,
हमने इसे ताटंक मात्रिक  छंद पर  लिखा | जिसमें १६ , १४ पर यति होती है और आखिर में म गण होना लाजमी है | परन्तु रचना करते समय वैसे शब्द जेहन में नहीं आते , इससे मैं मजबूर हूँ |
आपकी  राय सदा ही सिरोधार्य है |
बहुत बहुत धन्यवाद
सादर ,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 2:17pm

आपने किस छंद पर प्रयास किया है, भाई, इसे आप पहेली की तरह न रखें तो कई प्रयासकर्ता आपके प्रयासों से कई तथ्य समझ पाते.  खैर, आपको तो कह-कह कर मै अब थक-सा रहा हूँ. मुझे तो आपका प्रयास चौपाई छंद लग रहा है.

सधन्यवाद

Comment by D P Mathur on August 3, 2013 at 10:06am

 आदरणीय वर्मा जी , सुन्दर रचना की बहुत बहुत बधाई !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2013 at 2:25pm

सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by विजय मिश्र on August 2, 2013 at 1:31pm
"सब कुछ ऊपर वाला करता , ठोकर लगना बहाना है |
किसी के माथ पर जो गुजरा , गैरों को अफसाना है | " --- उचित बखाना आपने.आभार .
Comment by MAHIMA SHREE on August 1, 2013 at 9:43pm
समय चक्र चलता रहता है , फूल खिलें मुरझा जाते |
रोज नये पौधे उगते हैं , कुछ  रोज कुम्हला जाते... बहुत -२ बधाई .. बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति..
Comment by shubhra sharma on August 1, 2013 at 4:14pm
कुछ सोचें कुछ हो जाता है , मारा जाता है बेचारा |
हार जीत के लालच  में  ही , बस दौड़े ये जग सारा |

बहुत खुब सूरत रचना है आपकी ,आदरणीय वर्मा जी आपको बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service