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तुम कुछ बोल दो

आज मन उदास है ,
तुम कुछ बोल दो !
अर्न्तमन की आँखों से मुस्कुरा,
प्रेम शब्द उकेर दो !
खिलते गुलाब की पंखुड़ी से,
गुलाबी अधर खोल दो !
आज मन उदास है , तुम कुछ बोल दो !

.
तुम्हारे स्वप्निल ख्यालों में ,
मन कहीं खो जाये !

तन स्पर्श ना सही ,
मन स्पर्श हो पायें !
स्वर कोकिला रूप में ,
श्वासों की सुगन्ध धोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !

प्रेम का मधुपान करूं ,
अपना सा अहसास करूं !
मोहपाश में बाँध कर ,
नजरों से इजहार करूं !
सर्द भरी इस रात में ,
प्यार की किरणें बिखेर दो !!
इठलाते हुए मुख खोल कर,
बातों की मिश्री घोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !

! मौलिक एवं अप्रकाशित !

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Comment

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Comment by D P Mathur on July 17, 2013 at 11:25am

आप सभी आदरणीय साहित्यविज्ञों को प्रणाम , मौसम कि रूस्वाई से नासार होने के कारण आभार व्यक्त करने में हुई देरी के लिए क्षमा मांगते हुए आप सभी का हृदय से धन्यवाद देता हूँ कृप्या आगे भी आप सभी को स्नेह इसी प्रकार बनाए रखिए !
आदरणीय बृजेश सर एवं आदरणीया वंदना जी आपके सुझाये अनुसार समझने की कौशिश करूँगा लेकिन क्या करना चाहिए यह मैं नही समझ पाया हूँ आदरणीय बृजेश सर यदि आप अपना मोबाईल नम्बर दे सकें तो आपसे बात करके कुछ मार्गदर्शन पा सकूँ
9001199809

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 1:29pm

waah waah aadarneey kya baat hai

प्रेम का मधुपान करूं ,
अपना सा अहसास करूं !
मोहपाश में बाँध कर ,
नजरों से इजहार करूं !
सर्द भरी इस रात में ,
प्यार की किरणें बिखेर दो !!
इठलाते हुए मुख खोल कर,
बातों की मिश्री घोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !

badhaai sweekaren

Comment by Vindu Babu on July 16, 2013 at 10:46am
आदरणीय माथुर जी बहुत अच्छी तरह से भावाभ्यक्ति की है आपने! आदरणीय बृजेश सर से सहमत हूं कि कुछ साहित्यिक श्रंगार भी कर देते तो चार चाँद लग जाते।
वैसे प्रबल भाव-प्रवाह ही कविता का सबसे आकर्षक गुण होता है पर आपकी रचना अल्प प्रयास में ही मात्राओं से सजती नजर आ रही है,इसलिए ऐसा कहा बाकी मैं स्वयं अल्पज्ञ हूं आदरणीय।
सादर बधाई व शुभकामनाएं..
सादर
Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 11:00pm

बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको इस प्रयास पर।
आदरणीय इस रचना को आपको मात्रा के आधार पर बांधने का प्रयास करना चाहिए था। इस बिन्दु पर आगे प्रयास करें। रचना की सुन्दरता बढ़ेगी।
सादर!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 10:43pm

आ0 माथुर सर जी,  वाह!  अतिसुन्दर  प्रस्तुति।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by D P Mathur on July 12, 2013 at 8:37pm

आदरणीय सुमित जी , राम शिरोमणी पाठक जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, और विजय निकोर जी आपको कविता पसंद आने का मतलब शायद थोड़ा-2 मुझे लिखना आने लगा है आपके हौंसला बढ़ाने और टिप्पणी करने से प्रोत्साहन मिल जाता है आपका मार्ग दर्शन इसी प्रकार मिलता रहेगा ऐसी आशा के साथ आप सभी का आभार !

Comment by vijay nikore on July 12, 2013 at 4:55pm

सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति, आदरणीय। बधाई।

विजय

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 12, 2013 at 4:06pm

जब प्रेम भाव अभिव्यक्त होते है, तो कहते पत्थर भी बोल उठता है | फिर आपकी रचना के माध्यम से तो मिश्री घुल रही है 

आदरनीय डी पी माथुर साहब | सुन्दर भाव रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on July 12, 2013 at 11:15am

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति आदरणीय माथुर जी //सादर 

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 9:40am

sunder rachna  

  • प्रेम का मधुपान करूं ,

                अपना सा अहसास करूं !
        मोहपाश में बाँध कर , 
                नजरों से इजहार करूं !

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