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दोहा पंचक . . . .

नारी का कामुक करे, दागदार जब चीर ।
आँखों की प्राचीर से, झर- झर बहता नीर ।।

हार वही जो जीत का, लिख डाले इतिहास ।
तृप्ति संग तृष्णा करे, हरदम प्यासी रास ।।

जीवन मधुबन ही नहीं, इसमें हैं कुछ खार ।
दो पल खुशियों के मिलें, दुख की लगी कतार।।

मन को मन का मिल गया, मन चाहा मन मीत ।
मन के आँगन अवतरित, मन की होती  प्रीत ।।

वो नजरों के पास हैं, या नजरों से दूर ।
दिल के सारे खेल तो, दिल से हैं मजबूर ।।

सुशील सरना / 27-6-23
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on July 1, 2023 at 7:49pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी पुष्टि के लिए हार्दिक आभार ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2023 at 2:19pm

जी, अब ठीक है।

Comment by Sushil Sarna on June 28, 2023 at 1:20pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । एडिट न कर पाने के कारण ऐसा हुआ है । सहमत एवं संशोधित । हार्दिक आभार सर
Comment by Sushil Sarna on June 28, 2023 at 1:18pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2023 at 7:37am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।

अन्तिम दोहे की प्रथम पंक्ति का भाव स्पष्ट नहीं है। दो बार नजरों का प्रयोग खटक रहा है। सादर .....

Comment by Shyam Narain Verma on June 27, 2023 at 9:46pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर दोहों से ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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