For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

221   2121   1221   212


कल रात तेरे शहर से गुज़रे तमाम रात।
ख़्वाबों में हमने देखे वो रस्ते तमाम रात।

मायूसी औ थकन के सिवा कुछ नहीं मिला,
बोझिल सहर की आस में जागे तमाम रात।

जलती ज़मीं की प्यास बुझाने के वास्ते,
तारे फ़लक की गोद में रोये तमाम रात।

अब मिल रही है हमको सज़ा हर गुनाह की,
ख़त तुझको एक उम्र लिखे थे तमाम रात।

मैं शायरी को छोड़के भी खुश न रह सका,
मिसरे महीनों आँखों में तड़पे तमाम रात।

अपनी तमाम ख़्वाहिशों को छोड़कर सनम,
हम भी बेहिसी के दश्त में भटके तमाम रात।

सोचा बहुत मगर न कभी तुझसे कह सके,
हम तेरे गम में जाने जां रोये तमाम रात।
=================

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 394

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on November 12, 2022 at 10:00pm

आदरणीय भाई Zaif साहब 

बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Zaif on November 12, 2022 at 3:28am

अहसास सर, कमाल ग़ज़ल कही, वाह।

Comment by मनोज अहसास on November 11, 2022 at 7:04pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्रणाम ग़ज़ल पर महत्वपूर्ण इस्लाह देने के लिए आपका हार्दिक आभार आपकी इस्लाह से ही मेरी ग़ज़ल पूर्ण होती है यह आप जानते हैं कभी-कभी उलझन में  रहता हूं इसलिए समय से जवाब नहीं दे पाता अपना बालक समझकर आप क्षमा कर देंगे ऐसी आशा है सादर

Comment by मनोज अहसास on November 11, 2022 at 7:01pm

आदरणीय मुसाफिर साहब गजल पर प्रतिक्रिया देने हेतु हार्दिक आभार

Comment by मनोज अहसास on November 11, 2022 at 6:59pm

आदरणीय अमीर साहब ग़ज़ल पर महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार

सादर

Comment by Samar kabeer on September 16, 2022 at 4:12pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करे I 

'कल रात तेरे शहर से गुज़रे तमाम रात'-- इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'हम यूँ तुम्हारे शह्र से गुज़रे तमाम रात' 

'मायूसी औ थकन के सिवा कुछ नहीं मिला'--इस मिसरे में 'औ' को 'और' लिखें I 

'ख़त तुझको एक उम्र लिखे थे तमाम रात'---इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'ख़त तुझको एक उम्र जो लिक्खे तमाम रात'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2022 at 6:10am

आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

भाई अमीरूद्दीन जी की बातों का संज्ञान लें। सादर..

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 23, 2022 at 4:03pm

आदरणीय मनोज 'अहसास' जी आदाब, ख़ूबसूरत भाव पक्ष के साथ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।

'कल रात तेरे शहर से गुज़रे तमाम रात'... मिसरे मेंं 'रात' शब्द का दोहराव खटक रहा है, इसके इलावा ऊला में 'तेरे' और सानी में 'हमने' होने से शुतरगुर्बा ऐब ज़ाहिर हो रहा है, ग़ौर फ़रमाएं। ऊला यूँ कर सकते हैं -

'कल हम तुम्हारे शह् र से गुज़रे तमाम रात'

'हम भी बेहिसी के दश्त में भटके तमाम रात'..... यहाँ 'भी' शायद टंकण त्रुटि के कारण आ गया है, देखियेेगा। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
19 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
21 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
26 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
43 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
52 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
58 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service