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फसल की बालियां,डालियां और पत्तियां आपस में बातें कर रही थीं।
' हम फल हैं।जीवन का पर्याय हैं।' बालियां इतरा कर कह रही थीं।
' हम भोजन  न बनाएं,तो सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जायेगी।' पत्तियों ने आंखें तरे ड़ कर कहा।
' वाह वाह! क्या कहने! गर हम तुम्हें न संभालें तो फिर क्या हो?' डालियां जरा  मौज में झूमकर बोलीं।
' ठहरो,ठहरो।हमें असमय सूखने पर मजबूर न करो।हम अभी नाजुक दौर में हैं।' बालियों और पत्तियों की सम्मिलित आर्त ध्वनियां गूंजने लगीं।
जड़ और तने एक दूसरे को देख किसी तरह अपनी खिलखिलाहट थामे हुए थे। वे बगल में खड़े अपने आका किसान की तरफ एहसान भरी नजरों से निहारने लगे,जो तपती धूप में उन्हें पानी पिलाने आया था।बाकी  खेतों के पौधे ललचाई आंखों से कभी उस किसान,तो कभी उन खुश नसीब पौधों की तरफ देखते।उनके आका कृषक हित में आंदोलन करने गए थे।

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"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Samar kabeer on December 10, 2020 at 12:01pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2020 at 8:58am

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

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