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मुद्दा भुनाने के लिए होता है--- डॉo विजय शंकर

बात करना , खूब बात करना ,
मुद्दे की बात कभी मत करना ,
मुद्दे की बात करोगे ,
अकेले रह जाओगे ,
फिर कहाँ जाओगे ,
लौट के ( बुद्धू ) फिर वहीँ आओगे।

मुद्दे के आस- पास रहना ,
उसके पास ही नाचना ,
वहीँ गाना , वहीँ बजाना ,
जब - जब मौक़ा मिले ,
मुद्दे को भुनाना , बस .
मुद्दे को खुद कभी नहीं उठाना ,
वरना खुद उठ जाओगे ,
मुद्दे को फिर भी वहीँ पाओगे।

मुद्दा भुनाने के लिए होता है,
निपटाने के लिए नहीं होता है |
जो थोड़ा हट के होते हैं
वही दुनियाँ में ख़ास होते हैं |
मुद्दे से वो भिड़ते नहीं ,
समस्या को वो समझते हैं ,
डट के सामना करते रहो
लोगों से यही अपील करते हैं ,
लोग समस्या से भिड़ते रहें ,
इसका मतलब समझते हैं ,
मुद्दा-समस्या-संतुलन एक सिद्धांत है,
कैसे उपयोग हो इसका ,समझते हैं ॥
मुद्दे-मुद्दे को खूब समझते हैं ,
खूब समझते हैं , इसीलिये
उनकीं बात कभी नहीं करते हैं ||

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 560

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2015 at 9:00pm
बहुत बहुत आभार , आपकी टिप्पणी बहुत सही है , आदरणीय इंजी ० गणेश जी बागी जी। बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:19pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर,  बेहतरीन कविता.....हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 7:46pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर,  अंतर्मन में बहुत गहरे तक प्रभाव छोडती बेहतरीन कविता.....

जब - जब मौक़ा मिले ,

मुद्दे को भुनाना , बस .

मुद्दे को खुद कभी नहीं उठाना ,

वरना खुद उठ जाओगे ,

मुद्दे को फिर भी वहीँ पाओगे।......शानदार रचना , हार्दिक बधाई ! सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2015 at 11:53am

बात करो, खूब बात करो,
पर मुद्दे की बाsत !!

कभी मत करो,
मुद्दे की बात करोगे ,
अकेले रह जाओगे ,
फिर कहाँ जाओगे ,
लौट के वहीँ आओगे।

वाह वाह, क्या बात कही है आदरणीय, प्रोब्लम जब सॉल्व हो जायेगी तो फिर सॉल्वर कहाँ जायेंगे, अच्छी कविता बहुत बहुत बधाई.

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