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वक़्त मुसाफिरी का है ,गुजार ले-- डॉo विजय शंकर

ये तू , ये मैं ,
ये साथ , ये अकेलापन,
सब यहीं है ,
यहीं का है,
एक बार यहां से गए ,
तो तू कौन,
मैं कौन,
एक नाम ही है,
सब यहीं रह जाएगा ,
बहती हवा में बह जाएगा ,
द्रव्य, दृश्य,शब्द, स्मृतियाँ, सब,
कुछ मिटटी में , कुछ
वायु में विलीन हो जाएगा ,
नष्ट नहीं होगा ,
पर साथ नहीं जाएगा ,

ये तू, ये मैं , ये साथ ,
ये रिश्ते , ये बंधन ,
ये सब यहीं के हैं ,
यहीं तक हैं ,
यहीं रह जाएंगे ,
समय में खो जाएंगे ,
साथ नहीं जाएंगे।
ये वक़्त मुसाफिरी का है ,
खुश रह के गुजार ले ,
सफर का लुफ्त ले ,
जो जा रहा है उसे छोड़ दे ,
जो आ रहा है,
उसे स्वीकार ले ,
हँस के या रो के
ये सफर गुजार ले ,
भव है , स्वयं को
भव के पार उतार ले ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on May 14, 2015 at 9:01am
आदरणीय निर्मल नदीम जी, आपका बहुत बहुत आभार , आपने रचना को पसंद किया , सादर।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 14, 2015 at 7:08am

जीवन की मुसाफ़िरी का दार्शनिक पहलू बखूबी पेश किया है आपने बधाई ....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 9:54pm
आदरणीय विजय सर बेहतरीन कविता हुई है। सत्य को अभिव्यक्त करती इस रचना हेतु हृदय से बधाई।
Comment by Nirmal Nadeem on May 13, 2015 at 9:24pm
वाह क्या बात है। बहुत मार्मिक और सत्य रचना है साहब। वाह वाह
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 9:20pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , आपका बहुत बहुत आभार , आपने रचना को इतना गंभीरता से लिया , उसे मान दिया , आपकी बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 9:18pm
आदरणीय सुश्री माला झा जी, आपका आभार , सद्भावनाओं हेतु धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 9:14pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपका आभार, आपको रचना पपसन्द आई , सद्भावनाओं के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 9:13pm
आपका बहुत बहुत आभार, आदरणीय समर कबीर साहब , आपको रचना अच्छी लगी,आप रचनाओं को गंभीरता से समय देते हैं और उनका मान बढ़ाते हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 9:10pm
आपका बहुत बहुत आभार, प्रिय जीतेन्द्र जी , आपको रचना अच्छी लगी, धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 13, 2015 at 6:22pm

आदरनीय विजय सर ..बिलकुल सहमत हूँ कास इंसान ये भली भाँती समझ सके ..जिस दिन इंसान इस तथ्य  को महसूस कर ली दुनिया के तमाम दर्द छू मंतर हो जायेंगे ..आपके बिचारों की चलती अनवरत श्रंखला की इस कड़ी पर आपको ढेरों बधाई सादर 

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