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इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति -- डॉo विजय शंकर

देश-प्रेम से ओत-प्रोत लोगों में देश के लिए भावुक हो जाना स्वभाविक है। पर भावुकता के साथ साथ यथार्थ को यथावत स्वीकार कर लेना भी देशप्रेम ही है।
ओ बी ओ स्वर्ण जयंती महोत्सव में ' भारत बनाम इण्डिया ' के सन्दर्भ में इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति पर एक दृष्टि डाल लेना किंचित विसंगत न होगा।
सामान्यतः यह माना जाता है कि जीवन - दायनी गंगा ने इस देश की संस्कृति निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया और सिंधु नदी ने इस देश को पाश्चात्य विश्व में एक पहचान दी और एक नाम दिया | सिंधु नदी भारत के पश्चिमोत्तर के अधिकांशतः उस क्षेत्र के निकट वर्ती क्षेत्र में प्रवाहित है जो विश्व में निकट पूर्व का क्षेत्र कहलाता है , और जो भारत का पश्चिम और मध्य एशिया से थल मार्ग का द्वार भी है। पुरातन नामकरणों में भौगोलिक क्षेत्र और नामों का काफी योगदान रहा है। पारसीक ( ईरानी ) सम्राट डेरियस प्रथम के समय में पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में होने वाले पारसीक आक्रमण के दौरान जो पारसीक भारत के उस क्षेत्र के संपर्क में आये उन्होंने सिंधु नदी के क्षेत्र को सिंधु के बजाय ' हिन्दू ' उच्चारित किया क्योंकि उनकीं भाषा में ' स ' का उच्चारण है नहीं. । उदाहरणार्थ ,जैसे वे हफ्ता बोलते हैं , हम सप्ताह बोलते हैं। धीरे -धीरे यह नाम परिपशिमोत्तर सीमान्त के पार के लोगों लिए सिंधु क्षेत्र और वहां के निवासियों के नाम पर्याय / परिचायक बन गया।
लगभग उसी समय के आस-पास यूनानी ( ग्रीक ) भी इस क्षेत्र को इसी नाम से जानने लगे। ग्रीको - रोमन भाषाओं में अक्सर ( ह ) का उच्चारण विलुप्त रहता है अतः उनके यहां इस शब्द हिन्दू से उनकी भाषा में ( ह ) विलुप्त हो गया और यह इन्ड रह गया। तत्कालीन ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ( जिसे विश्व में history शब्द का जन्मदाता होने के कारण ' father of history ' कहा जाता है ) ने इस क्षेत्र के लिए हिन्दू के स्थान पर ' इण्डोस ' शब्द का प्रयोग किया जो उच्चारण के कारण ही रोमन प्रभाव में ' इन्डस ' हो गया। मेसीडोनियन / यूनानी सम्राट एलेक्जेंडर (जिसे हम सिकंदर कहते हैं ) के एक इतिहासकार एरियन ने इसी के आधार पर भारत पर जो पुस्तक लिखी उसका नाम ' इंडिका ' रखा। एलेक्जेंडर के सहायक एवं परवर्ती सेल्यूकस के द्वारा पाटलिपुत्र में भेजे गये राजदूत ने भी वहां रह कर जो पुस्तक लिखी उसका नाम भी ' इंडिका ' ही रखा। समय के साथ धीरे - धीरे यह ग्रीक इतिहासकार ल्युसियन के समय में दूसरी शताब्दी ईस्वी तक इंडिया हो गया।
अब चाहे यह नाम यूरोपियन्स ने ही गढ़ा हो पर यह अंगेजी नाम तो नहीं ही है क्योंकि इसकी व्युत्पत्ति पूर्णतया देशज एवं भारत भूमि की भौगौलिक स्थिति से जुड़ी हुयी है। फिर विचारणीय यह भी है कि हिन्दू शब्द की व्युत्पत्ति भी एक विदेशी भाषा से प्रभावित है , अभी तक हमें हिन्दू शब्द की कोई अन्य व्युत्पत्ति ज्ञात नहीं है। ऐसी स्थिति में इंडिया शब्द को हम अपना न मान कर अंग्रेजी शब्द क्यों माने , विचारणीय है.
विषम भाषा-भाषियों के दीर्घ संपर्कों में ऐसा होना अस्वभाविक नहीं है। अंग्रेज शब्द स्वयं कहाँ से आया , उसे हमने भी ऐसे ही गढ़ा। ब्रिटिश भाषा-भाषी के रूप में मूलतः इंग्लिश नाम से जाने जाते हैं। फ्रेंच में उन्हें इंग्लिश के बजाय Anglais ( अंग्लैस ) कहा जाता है , भारतीयों में फ्रेंच सम्पर्क से यह Anglais से अंग्रेज हो गया। धीरे - धीरे हिन्द - उपमहाद्वीप में अंग्रेज एक वर्ग-विशेष की पहचान से पूरी एक संस्कृति का परिचायक बन गया। विश्व में औपनिवेशिक विस्तार ने ऐसे बहुत से प्रभाव छोड़े हैं , अब वे चलन में हैं।
यह भी विचारणीय है कि अंग्रेजों का भारत से संपर्क पूर्व से पूर्व सत्रहवीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ और अंग्रेजी भाषा स्वयं अपने पूर्ण विकसित स्वरुप में सोलहवीं शताब्दी में ही आई। अतः इंडिया शब्द की व्युत्पत्ति का श्रेय उन्हें देना कहाँ तक समीचीन होगा। यह विचारणीय है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 26, 2014 at 10:34pm

आदरणीय विजयशंकर भाईजी,

दोस्ती हो या दुश्मनी हमें जिन देशों से सदा सतर्क रहना है वो है .. अमेरिका इंग्लैंड पाकिस्तान और चीन । दो करीब हैं दो दूर लेकिन भरोसे के लायक कोई नहीं है। चारो मुँह में राम बगल में छुरी वाले हैं। पाँच देशों को वीटो पावर है भारत छठा देश बन चुका होता लेकिन अमेरिका इंग्लैंड सख्त विरोध करते रहे और आज भी कर रहे हैं।

एक अक्टूबर को मैंने तीन देशों को लेकर ‘ आल्हा छंद ‘ में -- भारत की कुंडली में तीन अमंगल ग्रह लिखा है ।

छंद में जहाँ जहाँ अमेरिका है वहाँ इंग्लैंड को भी जोड़कर देखें, मुझे विश्वास है आपको पढ़ने में आनंद आएगा। मेरे फोटो को क्लिक कर ब्लाग में जायें तो रचना मिल जाएगी।

आपने तो बहुत से प्रश्न उठा दिए हैं , आगे उन पर भी चर्चा करते रहेंगें....  सच कहा आपने चर्चा होती रहेगी।

आपने मेरी टिप्पणी को मान दिया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद । आल्हा छंद पर अपनी प्रतिक्रिया कृपया अवश्य दीजिए , उसी जगह ,वहीं पर 

सादर 

 

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 19, 2014 at 12:04pm
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,
आपकी चिंता , चेतना एवं वेदना , सबको नमन। कितने लोग मिलते हैं जो कभी देश , समाज, परिवेश के बारे में इतना सोचते हैं, पढ़ते हैं और ध्यान देते हैं। आपकी देश के प्रति भावनाएं सम्माननीय हैं , सच हैं , सद्भावनाओं से देश बनता है पर इतिहास भावनाओं से बनता बिगड़ता नहीं। यह कटु है , पर है।
मैं इतिहास का विद्यार्थी रहा हूँ और मैंने उसे मानव के इतिहास के रूप में अधिक पढ़ा है, न कि राजाओं और युद्धों की जीत - हार के रूप में। इतिहास के बड़े, पुराने और गौरवशाली होने से कुछ नहीं होता , जब तक हम उससे कुछ सीखते नहीं। सारे इतिहासकार ये जानकर अचंभित रह जाते थे कि हमारे पुरखों में अपने इतिहास के प्रति एक बहुत ही उदासीन दृष्टिकोण रहा करता था। संभवतः आप अन्यथा न लेंगें , वर्तमान में तो इतिहास को प्रायः झुठलाने की चेष्टा अधिक होती है। इतिहास सिर्फ गर्व करने की चीज़ नहीं है, राष्ट्रीय जीवन में एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण की अनिवार्यता सदैव समझी जाती रही है , हमारे यहां वह भी नहीं रही। यही कारण है कि हम अपने ही स्वर्णिम अतीत से लाभ नहीं ले पाते हैं और छोटे - छोटे स्वार्थों के लिये बड़े बड़े हितों को विस्मृत कर देते हैं।
स्वतंत्रता के बाद हर कमी , हर विसंगति के लिए अंग्रेजी शासन को दोष देना और अपना बचाव करना ही रह गया था। दो पीढ़ियां बीत चुकी अब तो इस तरह अपना बचाव करना छोड़ देना चाहिए। भारत उपनिवेशवाद का शिकार रहा , हम उसे गुलामी का नाम देते हैं। दुनिया के कितने छोटे- बड़े राज्य उपनिवेशवाद के शिकार हुए पर खुद को गुलाम- गुलाम शायद ही कोई कहता हो और शायद ही कोई अपनी कमियों के लिए अभी तक उन्हीं को दोष देता हो। विश्व कितना बड़ा हिस्सा सत्रहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक उपनिवेशवाद का शिकार रहा है , पर उससे और उन भावनाओं से मुक्त चुके हैं.
अतीत पर लौटते हैं , प्राचीन काल में हमने दक्षिण पूर्व एशिया में विशाल सांस्कृतिक भारतीय उपनिवेश बनाया , विश्व आज भी इसे इसीलिये इंडो- चीन के नाम से जानता है क्योंकि वहां भारत का सांस्कृतिक प्रभाव रहा था। बाद में यहां चीन का राजनैतिक प्रभाव रहा.कंबुज, जावा , सुमात्रा , चम्पा , मलय , ये हिंदी एवं भारतीय नाम हैं और द o पू o एo के देशों के पुरातन नाम हैं । विश्व जब उपनिवेशवाद का नाम तक नहीं जानता था तब हमने पूरी एक औपनिवेशिक संस्कृति को जन्म दिया , विकसित किया , बौद्ध धर्म के रूप में हमने विश्व को विश्व का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय धर्म दिया। पर हम अपने उस प्रभावशाली स्वरुप को सदैव स्थायी नहीं बनाये रख पाये और तमाम विदेशी ताकतों ने यहाँ अपने पैर जमा लिए।
अंग्रेज भी उन्हीं में से एक थे। वे भी पुर्तगाली, फ्रेंच , डच की तरह यहां व्यापार करने आये थे , शासक बन बैठे। उनकों कोसें , जरूर कोसें , पर बड़ी पैनी नज़र इस बात पर रखें कि फिर उसकी पुनरावृति कभी न हो। इस पर विचार करें कि एक व्यापारी वर्ग ( कम्पनी ) यहां शासक कैसे बन गया। इतिहास की मांग यह है कि उस पर निरंतर कड़ी दृष्टि राखी जाए , व्यापारी व्यापारी ही रहे और शासन के नियंत्रण में रहे।
आपने तो बहुत से प्रश्न उठा दिए हैं , आगे उन पर भी चर्चा करते रहेंगें , आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर !
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 6:04pm

आदरणीय विजयशंकर भाईजी,                                                                                                                            इस प्रस्तुति पर् हार्दिक बधाई स्वीकर करें। 

आपकी सब बाते सही हैं  लेकिन .....                                                                

 

भारत का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है फिर हम क्यों 2-3 हज़ार वर्ष की बात कर ईशा पूर्व और ईशा बाद जैसै शब्दों का प्रयोग कर अनावश्यक तर्क पर विचार करें। यूरोप अमेरिका या अन्य कोई देश करें तो समझ भी आता है। दूर क्यों जाते हैं लंका का इतिहास भी त्रेता युग से तो हर भारतीय को मानना ही पड़ेगा। अब क्या त्रेता द्वापर के लिए भी ईशा पूर्व जैसे शब्दों का प्रयोग करेंगे। लाखों बरस पुराना स्वाभिमानी लंका आज भी उसी स्वाभिमान के साथ देश के आगे श्री लगाकर श्रीलंका बना हुआ है। अनावश्यक तर्क देकर उसे सीलोन कहने वाले गोरे लुटेरे कौन होते हैं ? भला हो श्री लंका का कि वहाँ आज़ादी के बाद मानसिक रूप से गुलाम नेता सत्ता पर आसीन नहीं हुए वर्ना वह भी हमारी तरह  “सीलोन”  शब्द  को ढोते रहता।

सतयुग त्रेता द्वापर  को छोड़ हम कलियुग के प्रारम्भ की ही बात करें -- परीक्षित, जन्मेजय विक्रमादित्य आदि भारत के सम्राट या चक्रवर्ती राजा थे, इंडिया के नहीं। हजारों वर्ष को छोड़ बीच के किसी काल को पकड़ इंडोस इंडस इंडिका सिंधु जैसे शब्दों को लेकर आगे क्यों बढ़े। मुगलों ने हिंदुस्तान कहा अंग्रेजों ने इंडिया कहा। लेकिन  आज़ादी के बाद तो हमें एक मात्र भारत होना था। जब इंडिया शब्द अंग्रेजों की देन नहीं है तब तो उसे समझौते में लिखना ही नहीं था। लेकिन अंग्रेज धूर्त थे इसलिए गुलामी के शब्द को हमें अपमानित करने की दृष्टि से जोड़ा गया। बड़ा सवाल ये है कि हमने सख्त विरोध क्यों नहीं किया ? किस मुँह से करते, राजा महाराजा और नेताओं द्वारा उच्च स्तर पर अंग्रेजों की चापलूसी से तो पूरा इतिहास भरा पड़ा  है वर्ना हमें तो 90 वर्ष पूर्व आज़ादी मिल जाती या ये कहें कि गुलाम ही न होते। काश राम के देश वाले, रावण के देश श्रीलंका से सीख पाते कि स्वाभिमान और पूरी आज़ादी का क्या मतलब होता है।

अब रही बात अंग्लैस, अंग्रेज, इंग्लिस्तान या बरतानिया जैसे शब्दों की। तो क्या वे हमारी तरह इन शब्दों का प्रयोग अपनी डिक्शनरी , अपनी करेंसी, सरकारी काम काज़ साहित्य, यूएनओ या ओलम्पिक में भाग लेने के समय करते हैं ? हम उन्हें गोरे लुटेरे भी कह सकते हैं ( जो कि तर्क के अनुसार सही है ) लेकिन उन्हें क्या मतलब । वे हमारी तरह केचुयें तो है नहीं कि सर भी न उठा सकें।  ये तो हम हैं कि आज़ादी के बाद भी किसी न किसी बहाने गुलामों सा व्यवहार करते ही रहते हैं। और करने वाले प्रायः अभिजात्य वर्ग के वे लोग हैं जो विदेशी डिग्रियाँ लेकर और अंग्रेजी में सपने देखकर बुद्धिजीवी कहलाते है !!

अँग्रेज महा धूर्त थे । जान बूझकर अपमान करने के लिए देवी देवताओं नदी पर्वत हमारे तीर्थ स्थल और शहरों के नाम बिगाड़कर बोलते थे। और इंग्लैंड से पढ़कर आये देश के नेता , उद्योगपति, अफसर आदि इसका विरोध नहीं करते थे। पवित्र नदी गंगा को गैंगी कहने और आजकल योग को योगा कहने के पीछे क्या तर्क और इतिहास है ? कुछ नहीं , बस अपमानित करना ही इनका मुख्य ध्येय है।

शायद इसीलिए अभिजात्य वर्ग के भारतीयों द्वारा किए जा रहे  उच्चस्तरीय  चापलूसी के कारण ही इन्हें अंग्रेजों ने DOG तक कहा। वहाँ भी विरोध नहीं किये, मुस्कराते रहे।  DOG को कहीं उल्टा तो नहीं पढ़ लिए थे ?

कुछ महीने पहले की ही बात है भारत के क्रिकेट खिलाड़ियों को इंग्लैंड में “ डंकी ” कहा गया। पूरे दौरे में खिलाड़ी अधिकारी सभी बेशर्मों की तरह मुस्कराते रहे किसी ने सख्त विरोध नहीं किया, मीडिया बीसीसीआई और सरकार ने भी नहीं। गैरतमंद होते तो उसी दिन भारत लौट आते लेकिन ये काले अँग्रेज पूरी सिरीज़ खेलकर अपनी इज्जत गंवाकर ही लौटे। डाग, डंकी को अँग्रेजी पूजक लोग उपाधि समझकर मुस्कराते हैं !!!! 

वो जितने धूर्त थे हम आज भी उतने ही मूर्ख हैं। इंडिया शब्द हटा नहीं पा रहे हैं कि कहीं इंगलैंड नाराज़ न हो जाए। वो तो दूर मेरठ आदि कई शहरों की स्पेलिंग सुधार नहीं पा रहे हैं । इंगलैंड अमेरिका बीच- बीच में कुत्ता गधा या ऐसी ही कोई बात कहकर या हमारे अंदरूनी मामलों में दखल देकर , हमारी जासूसीकर, सुरक्षा के नाम पर एयरपोर्ट में बड़ी हस्तियों को नंगाकर देख लेते हैं कि कहीं इंडिया वालों का स्वाभिमान तो नहीं जग रहा है। मैकाले का कहीं पुनर्जन्म हुआ होगा तो आज अपनी चतुराई और हमारी मानसिक गुलामी और बेवकूफी पर अट्टहास कर रहा होगा।  

..... खैर . आगे फिर कभी ............. सादर 

 

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2014 at 6:18am
आपका स्वागत है, आदरणीय सोमेश कुमार जी , सादर।
Comment by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:33pm

बेहद ज्ञानवर्धक एवं भलीभांति शोधित लेख है ,मन के उस भ्रम को दूर करता है ,जिस लेकर इतना हो-हल्ला सुनाई पड़ता है ,लेख के लिए शुक्रिया 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 16, 2014 at 9:52pm
आपका स्वागत है , आदरणीय विजय निकोर जी , सादर।
Comment by vijay nikore on December 16, 2014 at 9:34pm

सिन्धु से हिन्दु तो पता था, पर इतनी सारी और जानकारी आपने एकदम नई दी है।

हार्दिक आभार।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 16, 2014 at 9:39am
आपका स्वागत है डॉ ० गोपाल नारायण जी , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 3:03pm

विजय सर !

इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपको बधाई  i इंडिया शब्द अंग्रेजो की देन न होकर उनसे पूर्व की अवधारणा है यह अधिकाँश लोग नहीं जानते i आपने पूरा  इतिहास देकर शब्द की व्युत्पत्ति को अधिकाधिक स्पष्ट  किया है i  सादर i

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