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ये मोहब्बत भी क्या चीज़ होती है -- डॉo विजय शंकर

हर बात की वजह होती है
ये मोहब्बत ही क्यों बेवजह होती है
और जो बवजह हो , वो कुछ भी हो ,
यक़ीनन, वो मोहब्बत नहीं होती है ॥

जानकार कहते हैं ,
बिना हिलाये तो पता भी नहीं हिलता ,
बिना किये तो कुछ भी नहीं होता है ,
फिर ये मोहब्बत क्यूँकर अपने आप होती है ।

यूँ तो बहुत जगाये रहती है , फिर भी ,
ये मोहब्बत क्यों एक गहरी नींद का ,
एक ख़्वाब सी लगती है जो हमेशा
टूट जाने के डर के साये में रहती है ॥

मोहब्बत कोई गुनाह तो नहीं है , नहीं है न।
जो करते हो और सजा पाते हो ,
पाते रहते हो , और सहते जाते हो ॥

मोहब्बत को कितना भी सहेज के रखो ,
कितना भी जमाने से बचा के रखो ,
पर इसे नज़र लग ही जाती है ॥
बहुत जल्दी लग जाती है ॥
बेहतर है इसे दिल में रखो , आँखों में रखो,
लोगों से बचा के रखो ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on December 8, 2014 at 7:54pm
आपको रचना एवं उसके भव्व पसंद आये , आभार , बधाई के लिए ह्रदय से सादर धन्यवाद आदरणीय गणेश जी बागी जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 8, 2014 at 7:51pm
आपकी बधाई के लिए ह्रदय से सादर धन्यवाद आदरणीय डॉo गोपाल नरायन जी।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 6:12pm

रचना अच्छी हुई है, भाव खूबसूरत व्यक्त हुए हैं, तनिक तराशने की आवश्यकता महसूस हो रही है, प्रथम स्टेन्जा में शब्द शायद बावजह है। बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2014 at 1:56pm

विजय सर !

आपने मोहब्बत को रुढ़िवादी चिंतन से अलग हटकर एक नयी दृष्टि से देखा   i  एतदर्थ आपको  बहुत बहुत बधाई  i सादर i

कृपया ध्यान दे...

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