For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुद्रा स्फीति --डॉo विजय शंकर

( नवीन मुद्रा के आगमन पर स्वागत सहित, अचानक प्रस्तुत )

कैसे गायब हो जाते हैं छोटे सिक्के ,
पाई , अधेला , धेला , दाम ,
छेदाम , पैसा , दो पैसा ,
इक्कनी , दुअन्नी , चवन्नी ,
गला कर उन्हें तांबे ,
पीतल में ढाल लेते हैं।
कहते हैं , उनकी खरीदने की
ताकत ख़तम हो जाती है ,
या उनकीं अपनी कीमत बढ़ जाती है ?
हमारी समझ घट जाती है ,
तभी तो वे पुराने सिक्के
चलन में आज मिलते नहीं ,
कहीं मिल जायें तो
सौ, दो सौ , हजार , दस हजार मे
बिक जाते हैं , क्योंकि बताते हैं कि
इसमें एक आदमी का कई कई दिन का
राशन - भोजन आ जाता था।
इसीलिये तो आज वह दस हजार का बिक जाता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 919

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 13, 2016 at 11:39pm
आदरणीय विजय निकोर जी , आपका बहुत बहुत आभार एवम धन्यवाद , बहुत दिन बाद मुलाक़ात हुयी , स्वस्थ रहें ,प्रसान रहें , सादर।
Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 2:03pm

बहुत ही अनोखा विषय और उस पर सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई, विजय शंकर जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 22, 2016 at 9:23pm
आभार, आदरणीय समर कबीर साहब, सादर।
Comment by Samar kabeer on September 22, 2016 at 6:14pm
जी,बहुत बहुत शुक्रिया,ऐसे ही स्नेह बनाये रहें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 22, 2016 at 12:52pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार , साहित्य में आप जैसे परिपक्कव लोगों की उपस्थिति सदैव अपेक्षित एवम सम्माननीय होती है , दुनियाँ तो सदा से विविधताओं से पूर्ण रही है पर एक समर्पित साहित्यकार की दृष्टि सदैव मानवीय विषयों पर बनी रहती है। यही जागरूकता है और यही साहित्य - साधना है। आपका शैर लाजवाब है , जो बात मेरी कविता में दस - बारह लाइनों में कही गई है वः आपने दस लफ्जों में कह डाली , शायरी की यही
तो खूबी है , आपके शैर के लिए भी आपका आभार। आपसे चर्चाएं आगे भी होती रहेंगीं तो आनंद द्विगुणित होता रहेगा। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 22, 2016 at 12:51pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी , आपकी कविता पर उपस्थिति एवं उसकी विवेचना के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Samar kabeer on September 21, 2016 at 10:42pm
आली जनाब डॉ विजय शंकर जी आदाब,आपने बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ और जनाब अशोक चक्रधर साहिब की रचना साझा की इसके लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
मैं जबसे ओबीओ परिवार से जुड़ा हूँ ,आपकी रचनाऐं कविता हो या लघुकथा ध्यान से पढ़ता हूँ और आपकी इस ख़ूबी से बख़ूबी वाक़िफ़ हूँ कि आपकी रचना के विषय हमेशा दूसरों से मुख़्तलिफ़ होते हैं और मेरी नज़र में यही कमाल-ए-फ़न है।
कोई भी विषय पाठक के लिये रूखा फीका हो सकता है ,ये बात आम पाठकों पर तो लागू हो सकती है लेकिन कुछ ख़ास पाठक भी होते हैं जो इन रूखे फीके विषयों का भरपूर आनंद लेते हैं और उसकी सराहना भी करते हैं ,और एक लेखक के लिये वो ख़ास पाठक ही काम के होते हैं,चाहे वो गिनती में कम हों । ओबीओ से प्रकाशित मेरी एक ग़ज़ल का शे'र साझा कर रहा हूँ ,शैर की ख़ासियत से तो एक रचनाकार होने के नाते आप बख़ूबी वाक़िफ़ हैं ही कि ग़ज़ल के शैर में कोई भी विषय खुल कर बयान नहीं होता,दो पंक्तियों में ही बात कहना होती है,अब यह पाठक पर निर्भर करता है कि वो उस विषय तक पहुँचता है कि नहीं :-

"लोग क्या क्या ख़रीद लेते थे
इक ज़माना था एक आने में"

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 3:03pm

आ. डॉ विजय शंकर सर आपने एक वांछित मुद्दे को कविता के रूप में प्रस्तुत किया है, अपने शीर्षक को सार्थक करती इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 20, 2016 at 8:21pm
आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी , आप इस रचना पर उपस्थित हुए , आपने इसे पसंद किया , आपका ह्रदय से आभार एवम धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 20, 2016 at 8:17pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , मैं मूलतः एक शिक्षक हूँ , यह बात मेरे लेखन में प्रकट हो ही जाती है , इसीलिये मेरे विषय अक्सर स्वाद-रहित , फीके-फीके से होते हैं परन्तु जीवन के बहुत नजदीक के होते हैं और मैं उन विषयों पर भी कलम चलाने लगता हूँ जिनके विषय इन मैं स्वयं जानता हूँ कि लोग कदापि आकर्षित नहीं होंगे। बस एक स्वभाविक मजबूरी है। मुद्रा स्फीति एक ऐसा विषय है जिस पर लिखना कठिन नहीं है पर सामान्यतः हमारा उस पर ध्यान जाता ही नहीँ क्योंकि हमने मान लिया है कि मूल्य वृद्धि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है , जो कमीज मैं आज एक हजार रूपये की खरीद रहा हूँ वही यदि आप मुझे देख कर एक महीने बाद खरीदने जाते हैं तो वह आपको एक हजार रूपये की नहीं ही मिलेगी कम से कम ग्यारह सौ रूपये की मिलेगी और मिलनी भी चाहिए। ऐसी हमारी सोंच बन चुकी है।
पर कहीं और देखें , जैसे मैं पिछले सात वर्षों से प्रायः प्रतिवर्ष अमेरिका जाता आता रहता हूँ , वहां वही कमीज यदि एक निर्धारित अवधि तक नहीं बिकती तो उसकी कीमत घटने लगती है , और कुछ महीने में वही कमीज हजार रूपये की जगह आपको पांच सौ में मिल सकती है।
एक बात और अमेरिका में डॉलर - स्टोर्स होते हैं जहां बहुत सी रोजमर्रा की वस्तुएं मात्र एक डालर की मिलती हैं , मैं पिछले सात वर्षों से देख रहा हूँ कि वे अभी भी एक ही डॉलर की मिल रही हैं। शायद हमारे देश के महान अर्थ शास्त्री इन प्रश्नों से विचलित नहीं होते , उनकीं दृष्टि कहीं और रहती है ,उन्होंने मुद्रा स्फीति को एक नैसर्गिक प्रक्रिया मान रखा है। यह बात और है कि हमारे ही देश में जब मैं सातवीं क्लास में पढ़ता था तो जो समोसा एक आने का मिलता था वह जब मैं इंटर में पढ़ता था तो भी एक ही आने में मिलता था , तब शायद हमारे अर्थ-शास्त्री इतने जागरूक नहीं होते थे। यह बातें किसी भी देश के लिए कितनी घातक है शायद उनकीं दृष्टि उस पर जाती ही नहीं। वैसे यह विषय साहित्य के ही हैं , इन पर ध्यान दें तो बहुत से दुखदायी और चिंतनीय विषय उत्पन्न ही नहीं होंगे।
प्रसंगतः कल ही मैंने ' हिंदी पू ' नामक मंच पर आदरणीय अशोक चक्र धर जी की इसी विषय पर एक कविता देखी , उन्होंने इसी विषय पर एक बिलकुल भिन्न प्रकार से एक कविता प्रस्तुत की है , चलिए आपके लिए उसे अंकित कर रहा हूँ ....
सिक्के की औक़ात

एक बार
बरखुरदार!
एक रुपए के सिक्के,
और पाँच पैसे के सिक्के में,
लड़ाई हो गई,
पर्स के अंदर
हाथापाई हो गई।
जब पाँच का सिक्का
दनदना गया
तो रुपया झनझना गया
पिद्दी न पिद्दी की दुम
अपने आपको
क्या समझते हो तुम!
मुझसे लड़ते हो,
औक़ात देखी है
जो अकड़ते हो!

इतना कहकर मार दिया धक्का,
सुबकते हुए बोला
पाँच का सिक्का-
हमें छोटा समझकर
दबाते हैं,
कुछ भी कह लें
दान-पुन्न के काम तो
हम ही आते हैं।
- अशोक चक्रधर
साथ ही इस रचना पर आगमन , इसे पसंद करने और मुझे इसी पर कुछ और लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए ह्रदय आपका आभार और धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
32 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service