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ग़ज़ल - मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा ( सलीम रज़ा रीवा )

मेरे  महबूब  कभी  मिलने  मिलाने  आजा !

मेरी   सोई   हुई   तक़दीर  जगाने   आजा !!

तेरी आमद को समझ लूँगा मुक़द्दर अपना !

रूह बनके मेरी   धड़कन मे समाने आजा !!

मैं तेरे  प्यार  की   खुश्बू  से महक जाऊगा !

गुलशने  दिल को मुहब्बत से सजाने आजा !!

 

तेरी    उम्मीद   लिए    बैठे    हैं    ज़माने  से !

कर  के  वादा  जो  गये  थे वो निभाने आजा !!

बिन तेरे सूना है ख़्वाबो का ख़्यालो का महल !

ऐसी    वीरानगी   में   फूल   सजाने    आजा !!

तेरी  हर  एक  अदा  जान  से  प्यारी है मुझे !

तू  हंसाने  न  सही   मुझको  सताने  आजा !!

अब  तड़प दिल की नही और सही जाती है !

प्यार  की कोई  ग़ज़ल मुझको सुनाने आजा !!

मौलिक व अप्रकाशित

9424336644

 

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Comment by SALIM RAZA REWA on October 17, 2013 at 8:09pm

 adrniy Abhinav Arun ji  dili shukriya 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 17, 2013 at 8:08pm

 नादिर ख़ान sahab bahut dino men aap ki duayen mili bahut bahut

shukriya aapni duaayon se navazte rhen


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 1:53pm

बहुत खूब सलीम भाई , बहुत उम्दा गज़ल कही है !!!!!

तेरी हर एक अदा जान से प्यारी है मुझे !

तू हंसाने न सही मुझको सताने  आजा !!     इस शेर के लिये आपको ढेरों दाद !!!!

Comment by Sarita Bhatia on October 17, 2013 at 1:06pm

वाह वाह सलीम भाई बहुत खूब 

Comment by Abhinav Arun on October 17, 2013 at 12:17pm

...सुन्दर प्रवाहमय ..भाव ...कामयाब ग़ज़ल की लिए बधाई आदरणीय सलीम जी

Comment by नादिर ख़ान on October 17, 2013 at 11:48am

बिन तेरे सूना है ख़्वाबो का ख़्यालो का महल !

ऐसी वीरानगी में  फूल सजाने आजा !!

तेरी हर एक अदा जान से प्यारी है मुझे !

तू हंसाने न सही मुझको सताने  आजा !!

वाह... वाह ....वाह...

जी चाहता है, बार बार पढ़ते जाए पढ़ते जायें 

उम्दा गज़ल के लिए भाई सलीम मुबारकबाद.. 

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