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ग़ालिब भूखे पेट है तुलसी नंगी पीठ..

ना गर्मी में ताप है, ना सर्दी में शीत,
जाने कैसा दौर है, कोई नियम ना रीत |

गूंगे बहरे पा रहे अंधों से सम्मान,
ग़ालिब भूखे पेट है तुलसी नंगी पीठ |

जब पैसा साहित्य का बन जाता है धर्म, 
ग़ज़लें बर्तन मांजती पानी भरते गीत |

आंसू पीकर सो गए बच्चे सब लाचार,
हार गए फिर वायदे, गयी उम्मीद जीत |
 
मन कंप्यूटर हो गए हृदय हुए रोबोट,
अजय नहीं है अब सुलभ, मन का कोई मीत |

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Comment by Rekha Joshi on October 10, 2012 at 1:01pm

मन कंप्यूटर हो गए हृदय हुए रोबोट,

अजय नहीं है अब सुलभ, मन का कोई मीत |,बढ़िया अभिव्यक्ति अजय जी ,बधाई 
Comment by वीनस केसरी on October 10, 2012 at 2:26am

वाह वा अजय साहिब
दोहा ग़ज़ल का क्या खूबसूरत और सुन्दर उदाहरण पेश किया

पढ़ कर दिल खुश हो गया
शिल्पगत खूबियों के विषय में तो छन्द महारथी ही कुछ कहेंगे मगर कथ्य ने दिल बाग बाग कर दिया 


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Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 1:24pm

जाने कैसा दौर है, कोई नियम ना रित |-----इसे रीत कर लें 

तुलसी नंगी पीठ----मीत,जीत,गीत-----के साथ पीठ नहीं चलेगा 

प्रयास करते रहें बहुत बढ़िया लिखा है  

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 12:58pm

बहुत बढ़िया प्रयास किया है बधाई आपको

गूंगे बहरे पा रहे अंधों से सम्मान,
ग़ालिब भूखे पेट है तुलसी नंगी पीठ |

कृपया ध्यान दे...

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