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रे मानव क्या सोच रहा, इस मरघट में क्या खोज रहा ?
यथार्थ नहीं - यह धोखा है, सार नहीं यह थोथा है.
               यह जग माया का है बाज़ार.
               जहाँ रिश्ता का होता व्यापार.
कोई मातु - पिता, कोई भाई है, कोई बेटी और जमाई है.
कोई प्यारा सुत बन आया है, कोई बहन और कोई जाया है.
                    ये रिश्ते हैं छल के प्राकार.
                    ये हैं माया के ही प्रकार.
इस माया को ही कहते जग, यह है मानव - जीवन का सर्ग.
माया से अलग - विलग होकर, पर जीवित नहीं रह सकता नर.
                    सृष्टि का मूल्य चुकाना है.
                    रिश्ते का फर्ज निभाना है.
पर मात्र स्वार्थ के बंधन में, रिश्ते - नातों के संगम में.
अपने - गैरों के चिंतन में, सुख के विचार को रख मन में.
                  जो मनुज आचरण करता है.
                   मानवता से ही लड़ता है.
वह है उस कुत्ते के समान, जो करता निज लहू का ही पान.
हड्डी में दाँत गड़ाता है, बदले में रक्त जो पाता है.
                  वह तप्त रक्त भी है उसका.
                  वह तृप्त भोज भी है उसका.
सुख पाने की अभिलाषा में, उत्तम भविष्य की आशा में.
जो वर्तमान को खो देता, जो होश - चैन को खो देता.
                 वह सबसे बड़ा भिखारी है.
                 दुर्दिन का ही अधिकारी है.
नभ छूती हुई अटारी हो, रत्नों से भरी पिटारी हो.
हाथी - घोड़े हों बेशुमार, भरा - पूरा हों परिवार.
               फिर भी तन्हा ही जाना है.
               सब कुछ यहाँ रह जाना है.
मरने पर सब मुँह मोड़ेंगे, निर्जन में संग सब छोड़ेंगे.
ना बहन और माता होगी,ना पुत्र और कान्ता होगी .
                  अकेले ही जाना होगा.
                  कर्मों पर पछताना होगा.
भ्रष्ट आचरण को अपनाना , सहम -सहम कर जीना है.
हो मनुज मनुज से छल करना, निज हाथों से विष पीना है.
जो कुछ भी है सृष्टि का है, मात्र कर्म ही तेरा है.
प्रिय ! तुम्हारे कर - कमलों में, मानसरोवर मेरा  है.
                  ................   सतीश मापतपुरी  

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on March 1, 2012 at 11:18pm
सादर आभार राकेश जी 
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 1, 2012 at 3:03pm

aadarniya satish ji, is rachana ko mera karbaddha pranaam.

Comment by satish mapatpuri on February 25, 2012 at 11:57am

आभार गणेश जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 11:05am

मानसरोवर श्रंखला की यह कड़ी भी अन्य कड़ियों की भाति बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है, खुबसूरत कथ्य के साथ प्रवाहमय प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय सतीश मापतपुरी जी, बस लेखन की धार को यू ही बनाए रखे |

Comment by satish mapatpuri on February 24, 2012 at 11:46pm
राजेश कुमारी जी और आशा जी, सराहना के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद 
Comment by asha pandey ojha on February 24, 2012 at 3:17pm

 samajik sarokaron ka vishleshn karti rachna  bahut khoob 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 24, 2012 at 11:25am

vaah bahut umda sashaqt rachna.badhaai.

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