For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास

2122   2122   2122   212

सब हवाले कर दिया तुझको मसीहा जान कर,
अब कहाँ जायें बता गैरों को अपना मान कर।

मत करो उससे शिकायत अपने घाटे लाभ की,
जिसको तुमने सर चढ़ाया दिल की बातें मान कर।

तेरा उससे प्यार है औरों से नफरत की उपज,
बरसों के रिश्ते भी चल उसके लिए कुर्बान कर।

वक्त का पहिया है ये तो चलना इसका काम है,
आने वाले कल की खातिर आज की पहचान कर।

खुद को उसको सौंपकर निश्चित हुए बैठे हैं हम,
उसको बस इतनी तलब है अपना कल आसान कर।

साँसों की गिनती का भी ले लेगा वो तुमसे हिसाब,
बन गया मालिक जो कहता था मुझे दरबान कर।

आदमी को आदमी के हाथों मरने के लिए,
सो गया आकाश में मालिक भी चादर तानकर।

जल न जाए ये चमन तेरे सितम की आग में,
अपने हाथों को उठाकर अम्न का ऐलान कर।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 419

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on January 20, 2020 at 10:08pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार हार्दिक आभार सुझाव का सदैव स्वागत एवं मान आपकी सलाह के बिना मेरी ग़ज़ल अधूरी है मैं हृदय से स्वीकार करता हूं सादर आभार

Comment by मनोज अहसास on January 20, 2020 at 10:08pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय धामी जी

Comment by Samar kabeer on January 19, 2020 at 8:52pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'खुद को उसको सौंपकर निश्चित हुए बैठे हैं हम,
उसको बस इतनी तलब है अपना कल आसान कर'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।

'आदमी को आदमी के हाथों मरने के लिए'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

आदमी को आदमी के हाथों मरता छोड़ कर'

शब्दों के नीचे नुक़्ते लगाना सीखिए ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 4:06pm

आ. भाई मनोज जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार बहुत खेद है पहली बार ये गलती हुई मुझसे सादर एक कोशिश की है__ सादर चोट पहले…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सुधार और बेहतरी की पुनः कोशिश करूंगी सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार अच्छे मतले के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश जी नमस्कार बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय जयहिंद जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिए  गुनीजनों की टिप्पणी…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। सुझाव के बाद अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में गिरह का शेर रह गया। "
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई। "
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service