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वज़ह.....

बिछुड़ती हुई
हर शय
लगने लगती है
बड़ी अज़ीज
अंतिम लम्हों में
क्योँकि
होता है
हर शय से
लगाव
बेइंतिहा
दर्द होता है
बहुत
जब रह जाती है
पीछे
ज़िंदगी
जीने की
वज़ह

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 365

Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 7, 2019 at 6:57pm

आदरणीय  Samar kabeer जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 7, 2019 at 6:57pm

आदरणीय Ajay Tiwariजी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on July 7, 2019 at 3:49pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on July 6, 2019 at 10:19am

आदरणीय सुशील जी, इस सहज सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई. 'शय' को 'शै' लिखना मेरे ख़याल से बेहतर होगा. सादर

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