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कैसे बाँचें पीढ़ियाँ, रंगों का इतिहास - दोहे ( लक्ष्मण धामी' मुसाफिर' )

दोहे

कदम थिरकने लग गए, मुख पर छाए रंग
फागुन में मादक हुआ, मानव का हर अंग।१।


टेशू महका हैं इधर, उधर आम के बौर
रंगों की चौपाल है, खूब सजी हर ठौर।२।


अमलतास को छेड़ती, मादक हुई बयार
भर फागुन हँसती रहे, रंगों भरी फुहार।३।


धरती से आने लगी, मादक-मादक गंध
फागुन का है रंग से, जन्मों का अनुबंध।४।


हवा पश्चिमी ले गयी, पर्वों की बू-बास
कैसे बाँचें  पीढ़ियाँ, रंगों  का इतिहास।५।


हिन्दू मुस्लिम सिक्ख का, भेद करो मत आज
होली  में  कुछ  तो  रखो, इन  रंगों  की  लाज।६।


मलकर कीचड़ स्वार्थ का, नेता हैं बदरंग
फिर उन पर कैसे  चढ़े, देश  प्रेम का रंग।७।


किस से होली खेलिए, मलिए किसे गुलाल
हर मजहब में आ गयी, खूब सियासी चाल।८।


हवा पश्चिमी कुछ बही, कुछ नगरों का वास
सबके मन  से  ले  गया, होली  का उल्लास।९।


कुछ  लोगों  को  दाग  हैं, होली  तेरे  रंग
आना उनके द्वार मत, जिनकी सोचें तंग।१०।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2019 at 4:29pm

आ. भाई समर जी, शंका समाधान के लिए सादर आभार।

Comment by Samar kabeer on March 27, 2019 at 11:08am

''टेशू महका हैं इधर' 

इसकी मात्रा 13 ही है,मुझसे भूल हुई,इसमें 'हैं' को "है" कर लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 26, 2019 at 6:58pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार। 

क्या " इधर " की मात्रा १२ नहीं है ? शंका समाधान कीजिएगा जिससे भविष्य में ध्यान रखा जा सके । सादर..

Comment by Samar kabeer on March 21, 2019 at 12:13pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,होली के पर्व पर बहुत अच्छे दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'टेशू महका हैं इधर' -12 मात्रा?

आपको रंगोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

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