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2122 1212 22

खूब सूरत गुनाह कर बैठे ।
हुस्न पर हम निगाह कर बैठे ।।

आप गुजरे गली से जब उनके ।
सारी बस्ती तबाह कर बैठे ।।

कुछ असर हो गया जमाने का ।
ज़ुल्फ़ वो भी सियाह कर बैठे ।।

देख कर जो गए थे गुलशन को ।
आज फूलों की चाह कर बैठे ।।

जख्म दिल का अभी हरा है क्या ।
आप फिर क्यों कराह कर बैठे ।।

किस तरह से जलाएं मेरा घर ।
लोग मुझसे सलाह कर बैठे ।।

लोग नफरत की इस सियासत में ।
आपको बादशाह कर बैठे ।।

दुश्मनी जब चले निभाने हम ।
वो हमें खैरख्वाह कर बैठे ।।

उस जमीं का उदास मंजर था ।
हम जिसे ईदगाह कर बैठे ।।

वो तो सरकार की सियासत थी ।
आप क्यूँ आत्मदाह कर बैठे ।।

अब तस्सल्ली उन्हें मुबारक़ हो ।
मुल्क जो कत्लगाह कर बैठे ।।

उन शहीदों को है सलाम मेरा ।
मौत से जो निक़ाह कर बैठे ।।

सिर्फ पहुँचे वही खुदा तक हैं ।
इश्क़ जो बेपनाह कर बैठे ।।

डॉ - नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2019 at 3:47pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन जी।बेहतरीन गज़ल।

उन शहीदों को है सलाम मेरा ।
मौत से जो निक़ाह कर बैठे ।।

कृपया ध्यान दे...

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