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अब शहादत को न जाया कीजिये ।
आइना उनको दिखाया कीजिये।।

मुल्क में है इन्तकामी हौसला ।
हौसलों को मत दबाया कीजिये ।।

आग उगलेगी सुख़नवर की कलम ।
अब न कोई सच छुपाया कीजिये ।।

ख़ाब जो देखें हमारे कत्ल की ।
हर सितम उनपे ही ढाया कीजिये ।।

उनके हमले से फ़जीहत हो गयी।
दिल यहाँ अपना जलाया कीजिये ।।

तफ़सरा कीजै नये हालात पर ।
आप अपना घर बचाया कीजिये ।।

ये ताल्लुक अब तलक जिंदा था क्यूँ ।
प्यार इतना मत दिखाया कीजिये ।।

खर्च क्यों हो देश के गद्दार पर ।
बोझ इतना मत उठाया कीजिये ।।

दर्द क्या है ये उन्हें भी हो पता ।
कुछ निशाना भी लगाया कीजिये ।।

क्यूँ यकीं करते रहे उन पर मियाँ ।
इस तरह धोखा न खाया कीजिये ।।

देखिए अंजाम अपनी फौज का ।
अब कबूतर मत उड़ाया कीजिये ।।

मौलिक अ प्रकाशित

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on March 4, 2019 at 1:46pm

आ0 बृजेश कुमार ब्रज साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 4, 2019 at 1:45pm

आ0 कबीर सर  तहेदिल से  बहुत आभार । 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 4, 2019 at 11:45am

वाह खूब आदरणीय त्रिपाठी जी...

Comment by Samar kabeer on February 25, 2019 at 2:59pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'अब शहादत को न जाया कीजिये'

इस मिसरे में क़ाफ़िया ग़लत है,सहीह शब्द है "ज़ाए" ।

'ख़ाब जो देखें हमारे कत्ल की'

इस मिसरे में 'की' को "का" कर लें,"क़त्ल"पुल्लिंग है ।

'तफ़सरा कीजै नये हालात पर'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "तब्सिरा"मिसरा यूँ कर लें:-

'तब्सिरा करके नये हालात पर' 

'ये ताल्लुक अब तलक जिंदा था क्यूँ'

इस मिसरे में 'ताल्लुक' को "तअल्लुक़" कर लें ।

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