For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं - गजल

२१२२/२१२२/२१२२/२१२


नींद में भी जागता रहता है जो सोता नहीं
हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं।१।


है जवानी भी  कहाँ  अब  चैन  के  परचम तले
सिर्फ बचपन ही कभी चिन्ताओं को ढोता नहीं।२।

ज़िन्दगी यूँ  तो  हसीं  है, इसमें  है  बस ये कमी

जो भी अच्छा है वो फिर से यार क्यों होता नहीं।३।


नफरतों का तम सदा को दूर हो जाये यहाँ
आदमी क्यों ऐसी  कोई  रोशनी बोता नहीं।४।


है रटा देती सियासत कुर्सियों की बात बस
कौन कहता है यहाँ पर आदमी तोता नहीं।५।


मोतियों से अश्क बिखरे दूब पर हैं देखना
झूठ कहती यार दुनियाँ आसमाँ रोता नहीं।६।


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2019 at 4:19am

आ.भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार । आपके सुझाव उत्तम हैं । बदलाव कर लिया है देखियेगा ।

Comment by Samar kabeer on February 1, 2019 at 2:16pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'है  जवानी  भी  कहाँ  यूँ  चैन  के  परचम  तले
सिर्फ बचपन ही कभी चिन्ता को बस ढोता नहीं'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'यूँ' को "अब" करना उचित होगा,और सानी मिसरे में 'बस' शब्द भर्ती का है,सानी यूँ कर सकते हैं:-

'सिर्फ़ बचपन ही यहाँ चिंताओं को ढोता नहीं'

'जिन्दगी वैसे हसीं  है  जिसमें  बस  ये ही कमी '

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'ज़िन्दगी यूँ तो हसीं है,इसमें है बस ये कमी'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2019 at 8:00am

आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on February 1, 2019 at 7:17am

आद0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2019 at 7:29pm

आ. भाई दयाराम जी, गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by Dayaram Methani on January 31, 2019 at 11:42am

नींद में भी जागता रहता है जो सोता नहीं
हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं।.......बहुत सुंदर आगाज़।

है रटा देती सियासत कुर्सियों की बात बस
कौन कहता है यहाँ पर आदमी तोता नहीं।...............बहंत गहरा कटाक्ष।


मोतियों से अश्क बिखरे दूब पर हैं देखना
झूठ कहती यार दुनियाँ आसमाँ रोता नहीं।.......बहुत ही लाजवाब शेर।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।

.....दयाराम मेठानी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय रिचा यादव जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें।"
32 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय निलेश "नूर" जी, आप लाजवाब ग़ज़ल लिखते है। बधाई स्वीकार करें।"
39 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।"
46 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तमाम आज़ी जी, उम्दा ग़ज़ल है आपकी। बधाई स्वीकार करें। आदरणीय तिलकराज जी के सुझावों से ये और…"
49 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल — 221 1221 1221 122 है प्यार अगर मुझसे निभाने के लिए आकुछ और नहीं मुखड़ा दिखाने के लिए…"
55 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय धामी सर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रिचा जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय इंसान जी अच्छा सुझाव है आपका सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर नज़र ए करम का"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय जयहिंद  जयपुरी जी सादर नमस्कार जी।   ग़ज़ल के इस बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। वाह वाह बेहद शानदार मतला के साथ  शानदार ग़ज़ल के लिए दिली…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी सादर नमस्कार जी। क्या ही खूबसूरत मतला हुआ है। दिली दाद कुबूल कर जी।आगे के अशआर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service