For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ताड़ना के कारी-अधिकारी' (लघुकथा)

'परखना, पहचानना, ताड़ना या प्रतारणा या उद्धार करना' ... इन विभिन्न अर्थों में संत तुलसीदास जी की चौपाई ”ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।“ में आये 'ताड़न' शब्द पर इंटरनेट-ज्ञान बघारते हुए कुछ पुरुषों में चर्चा क्या हुई, कि उनके बीच नई सदी के रंग-ढंग पर उस पंक्ति पर तुकबंदी और पैरोडी सी शुरू हो गई! .. फिर मज़ाक ने बहस का रूप ले लिया।


"भई अब तो महिला-पुरुष समानता और महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं अपने वतन में भी! योजनाएं और क़ानून बन रहे हैं लड़कियों और महिलाओं के हक़ में!"
"हां, अब तो तुलसीदास जी की चौपाई में उलटफेर कर दो! पुरुषों वाली सोच और लक्षण लड़कियों और औरतों में विकसित हो चुके हैं!"


मौजूद मित्र-मंडली में से बारी-बारी से पुरुष बोलते जा रहे थे।


"घर-बाहर, दुकान-दफ़्तर हर जगह लड़कियों और औरतों का ही बोलबाला है! अब तो लड़के और मर्द ही नहीं, लड़कियें और औरतें.. यहां तक की पालतू पशु तक भी उनके द्वारा परखे जाते हैं, शोषित और प्रताड़ित किए जाते हैं, भाई!" एक मर्द ने कहा।
"तुम तो पॉश-कॉलोनियों की किटी-पार्टियों वाली रईस सफ़ेदपोश या नक़ाबपोश अप्सराओं की बात करने लगे अब! अरे, वे तो लड़कों, मर्दों को ही नहीं, बल्कि अपने चंगुल में फंसाकर नाबालिग लड़कियों तक को ताड़ती और प्रताड़ित करती पायी गई हैं पैसे फैंक कर!"
"बिल्कुल सही फ़रमाया गुरू! चमकती-दमकती अप्सराओं के असली चेहरों के पीछे व्याभिचार और समलैंगिकता पुरुषों से टक्कर ले रही है!"
"अरे, ऐसा वे ही करतीं हैं जो अपनी नाबालिग उम्र में या शादी के पहले ऐसी प्रताड़नाओं से गुजर चुकी होती हैं!"


सबके अपने-अपने तर्क थे। कोई कहीं का कोई कड़वा सच बयां कर रहा था, तो कोई सर्वेक्षणों की पढ़ी-सुनी बातें कहकर अपनी भड़ास निकाल रहा था। तभी उनमें से एक ने अपना मौन तोड़ते हुए कहा - "भई, अपवाद हो सकते हैं, हमारे देश में! लेकिन विदेशों जैसे हालात भी नहीं हैं! हां, महानगरों में और धनाढ्यों में महिलाओं द्वारा महिला-शोषण, ताड़न-प्रताड़न तो बढ़ रहा है!"
"तो हो रहा है न तुलसीदास जी की चौपाई में भी फेरबदल वाला बयान-बदलाव! 'ढोल, अनपढ़, मुफ़लिस-ग़रीब, बेरोज़गार, पति, कर्मचारी , पालतू... सब नारी से ताड़ना-प्रताड़ना के अधिकारी'..!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 17, 2019 at 11:34am

मेरी इस रचना पर भी अपना अमूल्य समय देकर अपनी राय से अवगत कराने, अनुमोदन और मुझे प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब।

Comment by नाथ सोनांचली on October 27, 2018 at 5:27pm

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा लिखी आपने। बधाई संप्रेषित है।

Comment by Samar kabeer on October 27, 2018 at 3:59pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वेरकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2018 at 1:08pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।बहुत भेद भरी और अर्थ पूर्ण बात कह दी इसके माध्यम से।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service