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खुशबुएँ ज़ेहनी अभी भी कर रहे गुलजार क्यों??

2122-2122-2122-212
आप को जाना ही है तो आज कल इतवार क्यों।
तोडना गर दिल ही है तो प्यार और मनुहार क्यों।।

आप की नजरें बयाँ क्यों कर बहाना है नया ।
आप की यह भीगती पलकों में ये उपहार क्यों।।

शौख था गर भूलना ही भूल जाते बे -शबब।
खुशबुएँ ज़ेहनी , अभी भी कर रहे गुलजार क्यों।।

रोक लो यह छटपटाती रूह का एहसास है ।
जल चुका है आशियाँ जो खोज इसमें प्यार क्यों।।

देखना गर चाहते हो मेरे चेहरे में ख़ुशी।
हाथ में लेकर खड़े हो आप ही औजार क्यों।।

मेरे अंदर ही कुचल देते मेरे अहसास को।
अधमरी इस पौध पर अब इश्क की बौछार क्यों।।

हूँ मैं जाहिल,नीच,घटिया,और दूषित खून है।
गालियों की उष्ण बारिश करते नहीं अब यार क्यों।।
मौलिक अप्रकाशित /आमोद बिन्दौरी

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Comment by Mohammed Arif on August 8, 2018 at 12:49pm

प्रिय आमोद जी आदाब,

                  बेहतरीन ग़ज़ल का प्रयास । गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2018 at 11:41pm

आदरणाीय आमोद जी गजल अभी आैर समय चाहती  है प्रयासे के  लिए बघाई स्वीकार करें 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 6, 2018 at 10:50pm

 आदरणीय बहुत अच्छा प्रयास ।जनाब कबीर साहब की सार्थक इस्लाह ।

Comment by Samar kabeer on August 6, 2018 at 2:15pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

शिल्प और व्याकरण पर ध्यान दें ।

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