For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय बड़ा बलवान - लघुकथा –

समय बड़ा बलवान - लघुकथा –

माँ मरणासन्न स्थिति में चारपाई पर पड़ी थी। संजीव चारपाई के पास बैठा आँसू बहा रहा था।

"क्यों रोये जा रहा है पगले? जाना तो सभी को एक दिन पड़ता ही है"।

"माँ, मैं इसलिये नहीं रो रहा हूँ। मेरे रोने की वज़ह कुछ और है"?

"अरे सब भूल जा अब। मेरा आखिरी वक्त है, खुशी खुशी विदा कर दे”|

"नहीं माँ, मैं जीवन भर सुशीला को माफ़ नहीं कर सकूंगा"?

"ओह, तो तू अपनी घरवाली सुशीला से नाराज है क्योंकि वह तेरे साथ मुझे देखने नहीं आई"?

"माँ, तू बहुत भोली है। इस सुशीला के कारण ही मैं तेरी आखिरी ख्वाहिश भी पूरी नहीं कर सका"?

"कौनसी ख्वाहिश की बात कर रहा है"?

"तू अपने पोते का मुँह देखना चाहती थी ना"?

"अरे हाँ, मैं तो भूल ही गयी। कोई बात नहीं। देर सबेर हो ही जायेगा। जब ऊपर वाला चाहेगा। इसमें सुशीला का क्या दोष"?

"माँ सारा दोष उसी का है। जब तुमने कहा था कि जैसे ही  हमारा बच्चा होगा, तुम उसकी देखभाल के लिये हमारे पास आकर रहोगी"।

"हाँ यह तो कहा था मैंने"?

"मगर सुशीला नहीं चाहती थी कि तुम हमारे साथ रहो अतः उसने चोरी छिपे तीन बार बच्चा गिरवा दिया"।

"चल छोड़ बेटा, नादान है वह। माफ़ कर दे। ईश्वर और देगा"?

"नहीं माँ, अब सुशीला कभी माँ नहीं बन पायेगी”?

“शुभ शुभ बोल बेटा, ऐसे नहीं बोलते”?

“माँ, डाक्टर ने बताया कि तीन बार गर्भपात कराने से उसका गर्भाशय अब गर्भ धारण करने की क्षमता खो चुका है"।

“अरे बेटा, दूसरे डाक्टर को दिखालो। मेरा मन कहता है कि सब ठीक होगा"।

"माँ, जो लोग वक्त की कीमत नहीं समझते। वक्त उनको भी मूल्यहीन कर देता है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 1001

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on July 6, 2018 at 7:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 6, 2018 at 7:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 6, 2018 at 4:15pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार।  बहुत ही बढ़िया लघुकथा।  प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on July 6, 2018 at 11:48am

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on July 6, 2018 at 11:05am

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन पंच लाइन 

"माँ, जो लोग वक्त की कीमत नहीं समझते। वक्त उनको भी मूल्यहीन कर देता है"।

वाह,, सीख देती बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Mohan Begowal on July 5, 2018 at 6:29pm

 आदरनीय तेजवीर जी,बहुत सुंदर लघुकथा पर बधाई कुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service