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भंडारे में भंडारी(कहानी )

भंडारे में भंडारी

दोपहर पाली का एक स्कूल(दिल्ली )

“जिन बच्चों को लिखना नहीं आता कॉपी लेकर मेरे पास आओ |-----------अरमान,मोहित,रितिश और शंकर तू भी |” अध्यापक सुमित ने क्लास की तरफ देखते हुए कहा

“क्या लिखवाया जाए ?” फिर अरमान की तरफ देखते हुए

“सुबह नाश्ते में क्या खा कर आए हो?”

“चाय-रोटी |”अरमान ने सपाट सा जवाब दिया

 ठीक है लो ये “चाय” लिखो,ठीक-ठीक मेरी तरह बनाना |

“और मोहित तुमने क्या खाया ?”

“रात का रोटी सडजी और नमक  |”

“अच्छा चल नाक पोंछ और लिख-रोटी “

“और शंकर जी बहुत दिनों बाद दिखें हो ,आप ने क्या भोग लगाया ?”

शंकर आँखे नीची किए खड़ा रहता है

“अबे ! बोलता क्यों नहीं |क्या जड़ी सूंघ के आ रहा है |”

शंकर शांत रहता है और इधर-उधर देखता है

“बोलता है कि दूँ खाने को !“ हाथ उठाते हुए डांटता है

शंकर की आँख में पानी आ जाता है और सुमित को अपनी गलती का अहसास होता है फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए-सर से कोई बात नहीं छुपाते,पाप लगता है |

“मम्मी खाना नहीं बनाती ----“शंकर सिसकते हुए कहता है

“क्यों मम्मी बीमार रहती हैं या सुबह-सुबह काम पर जाती हैं ?“ सुमित ने हैरानी से उसके पेट की तरफ देखा

“पापा के पास पैसे नहीं होते |बस एक टाईम खाना बनता है  ” शंकर ने सधा सा जवाब दिया

“पापा शराब पीते हैं ?” सुमित ने प्रश्न दागा

“पता नहीं,वो सुबह-सुबह निकल जाते हैं और देर रात लौटते हैं नोयडा से |”

“यानि कि तुम बस स्कूल में ही सुबह का खाना खाते हो” निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करता है

 “पर छुट्टी के दिन क्या सीधे रात को खाते हो ?”

“मम्मी,चावल बना देती हैं,चटनी ,नमक-मिर्च किसी से भी खा लेते हैं |”

“तुम्हें चावल पसंद हैं?|”

शंकर की आँखे चमक उठती हैं

“ठीक है,लिखो ‘चावल’,साफ़-साफ़ सफ़ेद सफ़ेद ,पका हुआ चावल |”

“गुरूजी,चाय ! “चपरासी चाय रखते हुए बोलता है और सुमित अपने बैग से छोटा पार्ले-जी निकाल कर चाय में डुबोने लगता है |

टन-टन टन-टन लंच की घंटी बजती है

“सर !चना में कीड़ा है “

“दिखा तो !“ सुमित ने टिफ़िन में देखते हुए कहा

“अरे बेटा ये कीड़ा नहीं जीरा है |मेरी अभी-अभी “स्त्री-एकता” में बात हुई है |” पास खड़ी खाना बाँटने वाली को आखों ही आँखों में चुप्प रहने का ईशारा करता है

“अरे शंकर ! तू पीछे क्यों खड़ा है !कमलेश इसे ज़्यादा खाना देना,बिचारे के घर एक टाईम खाना बनता है |” और फिर वो दफ्तर में मिड-डे-मील रिकार्ड भरने चला जाता है |

 

यूपी का एक स्कूल

“बड़ी गुरूजी,आज डी.एम. साहब का ब्लॉक में दौरा है ,सम्भल के रहिएगा |” मुंशी बनवारीलाल ने प्राचार्या-कक्ष में प्रवेश करते हुए कहा

“बनवारी जी ,जरा रामलुभावन अहीर को फ़ोन कर दें दस सेर दूध दे जाए और भंडारिन कहो कि खिचड़ी ना डालें,बच्चा है ,इन लोगों का भी तो मन होता है ,आज का मीनू भी खीर-पूड़ी है ना |”दीवार पर लिखे मिन्यू को देखते हुए कहती है |

“एटेंssसन”

 सभी बच्चे खड़े हो जाते हैं

“बैठो-बैठो,देखों बच्चों ,बड़का  सरजी आए वाला हं,आज खीर-पूड़ी मिली ,खाए के बारे में पूछें त सबे जनि कहिया कि बहुत अच्छा खाना मिलता है |”गम्भीर मुद्रा में बोलीं

थोड़ी देर बाद

“गुरूजी पता करें हैं डी.एम. साहब बाबतपुर से दौरा कर वापस चले गए है  “ एक अध्यापक खबर देता है और वो लम्बी साँस लेती हैं और तभी

“बड़की गुरूजी,देखीं त ई मुसहर क पूत अउर खीर मांगत ह |”महराजिन ने आकर कहा

“काहे रे ! रोज घरे पूड़ी-खीर खाले | “

“गुरूजी बहुत भूख लगल ह |”

“त अपने बाऊ से कह दे कि एक बोरा चाउर रख जाएँ स्कूले में |”

“कैसे ह रे उ किस्सा ?” महराजिन की तरफ देखते हुए

हाँ ,याद आइल,बाप मर गईनअ अनीयs हारे बेटा क नाम पावर-हाउस “  दोनों दाँत निकाल कर हँसने लगती हैं और फिर महराजिन की तरफ देखते हुए

“घर से भदेला मँगाई की नहीं |”

“गुरूजी,हम भिजवा भी दिए |”

“शाबाश!”

 

मुख्यमन्त्री आवास

“दूषित भोजन खाने से जो बच्चे मरे हैं उनका दोषी कौन ?” रिपोर्टर ने माईक बढ़ाते हुए पूछा

“देखिए प्रशासन अपना काम कर रहा है |डी.एम. का तबादला कर रहे हैं |पुलिस छानबीन में लगी है जल्दी ही प्रिंसिपल भी गिरफ्तार होंगे|जिनके बच्चे मरे हैं उनसे हमारी सम्वेदना है|सरकार उन्हें 50 हज़ार का मुआवजा देगी |” गाड़ी में बैठते हुए पानी का घूंट भरते हुए मुख्यमंत्री ने कहा और खिड़की चढ़ा दी

 

मिड-डे-मिल अधिकारी कार्यालय दिल्ली

“साहब ! मैं मैनेजर स्त्री-एकता से |”

“आओ,बैठो |” अधिकरी ने कुर्सी की तरफ ईशारा किया

“सर,दो महीने से पेमेंट नहीं आई |हमारे सारे काम रुके हुए हैं |”

“ये देखों कितनी शिकायतें है |ना तो मिन्यू फॉलो हो रहा है ना खाना टाइम से पहुँच रहा है |” अधिकारी  ने फाईल खोलते हुए दिखाया

“इस बार माफ़ करें |आगे से ध्यान रखेंगे |” मिठाई का बंद डिब्बा बढ़ाते हुए मैनेजर ने कहा

“देखों,मैं बार-बार तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊँगा ! आखिर मुझे भी तो बच्चे पालने हैं |” डिब्बा बैग में रखते हुए अधिकारी ने कहा

“ठीक है सर !”

“अच्छा सुनो ,टेंडर निकलने वाला है ,एकबार मेयर साहब से मिल लो |”

“बड़ी मेहरबानी आपकी |” मैनजर ने उठते हुए कहा और अधिकारी ने बिल-क्लर्क को आवाज़ दी

 

क्षेत्रीय अल्पाहार-मीटिंग

“प्रीतम कॉलोनी से कौन आया है ? ” अधिकारी ने माईक से पूछा और एक अध्यापक के खड़ा होने पर

“क्यों भाई ! अगर सारे फैसले खुद ही लेने हैं तो वहाँ  क्यों बैठे हो यहाँ आ जाओ |”झल्लाते हुए अधिकारी ने कहा

“सर ! आप ही तो कहते हो कि बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दो |हमें खाने में दिक्कत लगी तो वापस लौटा दिया |”

“और अपनी मर्ज़ी से बिस्कुट बाँट दिए |जबकि बार-बार बताते हैं कि केवल फल बाँटने है |”

“पर सर इतनी जल्दी 600 बच्चों के लिए फल कहाँ से लाते ,आसपास मंडी भी नही है |”

“वो तुम लोग समझों पर अपने कागज़ दुरुस्त रखों |मुझे भी ऊपर जवाब देना होता है |” अधिकारी ने ईशारा किया

हाँ,बृजेश क्या कहना चाहते हो ?”एक अध्यापक का हाथ खड़ा देख अधिकारी महोदय ने कहा

“सर जी !गलती खाना-भेजने वाली संस्था करे और बलि का बकरा हम लोग बनें !जब से मैंने नौकरी ज्वाइन की तब से ये चार्ज़ मेरे सिर-मत्थे है,और तो और स्टाफ भी सहयोग नहीं करता |”

“हमारी भी,हमे भी,हमारे यहाँ भी यही होता है “ सभी बोलने लगते हैं

“प्लीज़ चुप्प हो जाइए !”

और शोर होने लगता है

“मेरी बात तो सुनिए |”

सभी चुप्प हो जाते हैं

“देखिए इसे आप बोझ मत समझिए ,ये तो एक सेवा है |आप कितने गरीब बच्चों का उपकार करते हैं| भूखों को भोजन खिलाना तो एक धर्म है |वैसे भी नौकरी है तो किसी ना किसी को ये जिम्मेवारी उठानी ही पड़ेगी ! मैं क्या ये चार्ज लेकर खुश हूँ !15 साल से यही चार्ज ढो रहा हूँ !जहाँ तक आप लोगों का सवाल है मैं डारेक्टर सर से बात करके एक सर्कुलर निकलवा दूँगा कि हर वर्ष स्कूलों में चार्ज़ रोटेट करवाएँ जाएँ |”

सभागार में तालियाँ बजने लगती हैं

“आप कुछ पूछना चाहती हैं ?” उस टीचर की तरफ देखकर

“सर,मिन्यू में बहुत सा खाना बच्चे पसंद नहीं करते – जैसे हलवा,दलिया,खिचड़ी ,कई बार चावल कच्चे होते हैं तो कई बार सब्ज़ी के नाम पर केवल उबला पानी| पुड़िया एकदम सूखी-सूखी !“

“मैंडम आपकी शादी हो गई !”

“नहीं सर !” अध्यापिका ने कुछ झेपते हुए कहा

“बुरा मत मानिए! मैं ये कहना चाहता हूँ कि जब बहू का ससुराल बड़ा हो और वो वो पक्की हो जाती है तो वो ज़्यादा परवाह नहीं करती कि रोटी  कच्ची है या पक्की |” मुस्कुराते हुए बोलता है

“सही बात,सही बात |” सारे अध्यापक समर्थन में बोलने लगते हैं

“सर लगता है मैडम कच्ची रोटी ही देती हैं |” एक अध्यापिका ने हँसते हुए कहा

“नहीं जी |हम तो सुबह-सुबह मैडम की भी रोटी सेंक आते हैं !”उन्होंने बात सम्भालते हुए कहा

हॉल हँसी से गूंज उठता है |

“चलिए कुछ सीरियस बात कर लेते हैं |देखिए ये संस्था वाले हज़ारों बच्चों का डबल शिफ्ट में अलग-अलग खाना सप्लाई करते हैं |हर बच्चे पर इन्हें 3 रुपए खाना पकाने के लिए और हर बच्चे की हिसाब से 200 ग्राम अनाज दिया जाता है |बाकि मैन-पावर से लेकर खाना भेजने तक और स्कूल में खाना बाँटने वाली तक को इन्हें 3 रुपए में ही मैनज करना होता है| पुड़ियाँ मशीन पर सेंकी जाती हैं और आटा भी  मशीन गुंथती है |फिर भी अगर किसी संस्था से ज़्यादा शिकायत है तो लिखित में दे जाइए | नए टेंडर आने वाले हैं इन्हें नेगेटिव कर देंगे |- -- और एक बात सावधान रहिए ! -खाने को सुरक्षित जगह पर रखिए |किसी अजनबी को स्कूल मैं घुसने मत दीजिए|-विशेष तौर पर मिडिया वाले |इन्हें तो मसाला चाहिए होता है ! और अगर तीर एक बार छूट गया तो मैं भी विवश हूँ |”

पूरा हॉल खामोश हो जाता है

“सर,हमारे स्कूल के तीन अध्यापक खाना चखकर बीमार हो गए थे |”

“अच्छा तो आप विजयपुर से हैं |बहुत बहादुरी का काम किया आप लोगो ने और मैनेज भी अच्छा किया |हमने उस संस्था को ब्लैक-लिस्ट कर दिया है |तथा उन टीचरों का नाम अध्यापक पुरस्कारों के लिए भेज रहे हैं |-अच्छा !अब मीटिंग वाइंड-अप करते हैं| सभी लोग हाजिरी जरुर लगाएँ |”

 

न्यूज चैनल

“ब्रेक के बाद आप सभी का स्वागत है |जैसा कि हम चर्चा कर रहे थे कि कैसे दूषित खाना खाने से 50 बच्चें बीमार हो गए हैं और ब्रेक पे जाने से पहले हमनें आप से पूछा था एक सवाल

“क्या मिड-डे मिल योजना में पके खाने की जगह पैक्ट-फ़ूड लाना चाहिए ?”

“इससे पहले की हम इस पोल का रिजल्ट बताएं |हम अपने एक्सपर्ट राष्ट्रवादी-दल के श्री घोड़ाप्रसाद की राय ले तर्र |” तेज़ तरार्र एंकर ने अपने लटें ठीक करते हुए कहा

“देखिए निशा जी! हम तो समाजसेवी हैं |और ये विषय तो हम सदन में भी जोर-शोर से उठा चुके हैं कि पका भोजन बच्चों को उपलब्ध कराने में कितने झंझट हैं और ऐसी बहुत सी कम्पनियाँ है जो पौष्टिक पैक्ट बना रही हैं और जिसे पूरी दुनिया चाव से खा रही है |”

“घोड़ा जी आप को बच्चों की नहीं अपनी फ़िक्र है ये देखिए ये 10 फ़ूड कम्पनियाँ जिनमें घोड़ा जी और इनके जानने वालों के नाम हैं |”वर्तमान राज्य सरकार की नेशनल शोर पार्टी के स्पीकर घंटामल ने कागज़ दिखाते हुए कहा

“अरे घंटामल जी पहले अपने गिरबान में झाकिए ! आपको क्या लगता है हम घास खाते हैं ! हम भी पूरी तैयारी करके आए हैं ये देखिए निशाजी आंगनवाडी हो या स्कूल घंटामल जी के करीबियों की संस्था का हर जगह घंटा बज रहा है |”

“देखिए अमर्यादित भाषा का प्रयोग ना करें ! “

“पहले शुरुवात आपने की ! “

“आप ये कैसे-कैसे लोगों को ----“

“रुक तेरी तो- - - “

वक्त हो रहा है एक छोटे से ब्रेक का हम मिलते हैं एक ब्रेक के बाद और

‘साईरा नूडल्स खाते हैं हम

इसमें है सेहत इसमें है दम ‘

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)

रचना तिथि-22/12/17

 

 

 

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Comment by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 8:34am

आद0सोमेश जी सादर अभिवादन। आप अच्छा लिखते हैं। पर उपरोक्त क़ई अंशो में प्रस्तुत करते तो पढ़ने में उबाऊपन नहीं लगता। बहरहाल इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2017 at 3:06pm

जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on December 23, 2017 at 8:16pm

आदरणीय सोमश जी, वृत्त चित्र की शैली में इस प्रभावी कथा-प्रस्तुति के लिए. हार्दिक बधाई

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