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ग़ज़ल...तुम्हारी याद का मौसम--बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222
हमें जब आज़माता है तुम्हारी याद का मौसम
सुकूँ भी साथ लाता है तुम्हारी याद का मौसम

ग़मों ने कोशिशें तो लाख कीं पलकें भिंगोने की
लबों पर मुस्कुराता है तुम्हारी याद का मौसम

हमारे रूबरू ठहरो कभी पल भर तो समझाएं
हमें कितना सताता है तुम्हारी याद का मौसम

इसे मैं छोड़ आता हूँ कहीं सुनसान सहरा में
मगर फिर लौट आता है तुम्हारी याद का मौसम

वहाँ तुम हो तुम्हारी पुरकशिश कमसिन अदाएं हैं
यहाँ 'ब्रज' गुनगुनाता है तुम्हारी याद का मौसम
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:51pm

आदरणीय तस्दीक़ जी आपके सुझाव 'पल भर' से शेर और अधिक खूबसूरत हो जायेगा..आपका हार्दिक आभार अभी सुधार करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:49pm

आदरणीय समर कबीर जी रचना पटल पे आपकी उपस्थिति सदैव ही उत्साहवर्धक होती है..स्नेह बनाये रखें..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:47pm

आदरणीय सुशील सरना जी खूबसूरत शब्दों में सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:46pm

आदरणीय अजय तिवारी जी बहुत बहुत धन्यवाद..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:45pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी रचना पटल पे आपका स्वागत संग आभार व्यक्त करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:44pm

आदरणीय अफरोज जी आपका स्वागत एवं आभार..अपने टंकण त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण किया उन्हें में शीघ्र ही दूर करता हूँ..चौथे शेर के विषय में आपकी सलाह स्वागतयोग्य है।ये ऐसी भूल है जिसे मुझ जैसे नए लोग अक्सर नजरन्दाज करते है।आपका सुझाव भी खूबसूरत है..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 19, 2017 at 9:39pm

आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी आपका हार्दिक आभार...सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2017 at 9:19pm

वाह बेहतरीन गजल कही है आदरणीय ब्रजेश भाई जी

Comment by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 6:30pm
वाह बृजेश जी वाह इस...
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 19, 2017 at 5:58pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ।टाइप गलती के बारे में अफ़रोज़ साहिब ने इशारा कर दिया है ।

शेर 3 उला मिसरे में दो पल की जगह  इक पल या  पल भर  ज़्यादा सही रहेगा ,देखियेगा 

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