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"अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा"

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

अगर वो मुफ़लिसी को रौनक़-ए-बाज़ार कर देगा
कई महरुमियों को बर सर-ए-पैकार कर देगा

सभी ने कर लिया इक़रार, लेकिन जानता है वो
अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा

किताबों में लिखा है उसको जन्नत की बशारत है
वफ़ा की राह में क़ुर्बान जो घर बार कर देगा

मिलाएगा अगर हर बात में जो हाँ में हाँ उसकी
उसे नीलाम वो इक दिन सर-ए-बाज़ार कर देगा

हमारे इश्क़ का चर्चा अभी सरगोशियों तक है
जो बाक़ी काम है वो सुब्ह का अख़बार कर देगा

पुराने ज़ख़्म दिल के भर चुके,अब देख लेना वो
हमारे वास्ते पैदा नया आज़ार कर देगा

अगर आमाल की उसके मज़म्मत की नहीं हमने
हमारा साँस लेना भी "समर"दुश्वार कर देगा
----
महरूमी-ना उमीदी,मायूसी,नाकामी
बर सर-ए-पैकार-जंग के लिए तैयार
बशारत-ख़ुश ख़बरी
सर गोशियों-काना फूसी
आज़ार-दुख, तकलीफ़
आमाल-अमल का बहुवचन
मज़म्मत-निंदा

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 10:08pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
'वफ़ा की राह'भी ख़ुदा की ही राह होती है,और शाइरी में हर चीज़ खुलकर बयान कर दी जाए तो फिर शाइरी क्या हुई,इब्हाम भी ज़रूरी है,ग़ौर कीजियेगा ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 3, 2017 at 9:52pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।शेर 3 में ख़ुदा की राह में या वफ़ा की राहमें ,देखियेगा
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:51pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:50pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:49pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:48pm
जनाब चौहान साहब आपका बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:46pm
जनाब अजय तिवारी जी आदाब,मान गये भाई आपके इंतिख़ाब को,जो शैर ग़ज़ल में मुझे सबसे ज़ियादा पसन्द है, आपने भी वही पसन्द किया ।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,स्नेह बनाये रखें ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:43pm
जनाब राम अवध जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:41pm
जनाब मोहित जी आदाब,हा हा हा..सुना है बुढ़ापे में आदमी ज़ियादा आशिक़ मिज़ाज हो जाता है ।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:38pm
जनाब नादिर भाई आदाब,अब आपकी तबीअत कैसी है ?
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़र हूँ ।

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