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एक थी एकता (लघुकथा)

"क्यों नवयुवक, तुम किस के लिए दौड़ रहे हो इस भीड़ में? एकता के लिए, अपने लिए, किसी महापुरुष की प्रतिष्ठा के लिए, सरकार के लिए या किसी को श्रद्धांजलि के लिए?"

एक विशेष अवसर पर आयोजित विशाल दौड़ में एक पत्रकार ने पूछा तो वह नवयुवक अपनी विशेष टी-शर्ट सही करते हुए, मोबाइल से सेल्फ़ी लेते हुए बोला - " ये बढ़िया रहा! लोकप्रिय पत्रकार के साथ यादगार फोटो! .... चलिए आप भी दौड़िए मीडिया कवरेज के लिए, ग्लैमर के लिए, पब्लिसिटी के लिए; 'राष्ट्रीय एकता' के इस बैनर तले!"

सब दौड़ रहे थे। एकता सड़क पर थी!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2017 at 5:00pm
इस रचना पटल पर समय देकर अपनी राय से अवगत कर मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, आदरणीय तेजवीर सिंह जी, जनाब सलीम रज़ा रीवा साहिब और जनाब मोहित मिश्रा 'मुक्त' साहिब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2017 at 4:55pm
मेरी इस रचनापर समय देकर अपनी प्रोत्साहक, समीक्षात्मक टिप्पणियों के द्वारा मुझे प्रोत्साहित करने के लिये बहुत-बहचत शुक्रिया मुहतरम जनाब नादिर ख़ान साहिब, जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब, जनाब मिथिलेश वामनकर साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब समर कबीर साहिब
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2017 at 6:04am
आ. भाई शेख शहजाद जी,सार्थक और प्रहार करती कथा के लिए कोटि कोटि बधाई ।
Comment by नादिर ख़ान on November 3, 2017 at 11:06pm

जनाब शेख शहजाद साहब रियाकारी आज हमारे समाज मे किस कदर बढ़ गई है किसी से छुपी  नहीं है आपने बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ मे लघुकथा कही ... बहुत मुबारकबाद ...पैनी निगाह बनाये रखिये ...


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2017 at 3:36pm

आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, इस सार्थक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2017 at 9:40am

जीवन में आज हर कोई दौड़ ही तो रहा है कोई अच्छे मकसद के लिए दौड़े तो भी उसका अर्थ अलग ही निकालेंगे क्योंकि वास्तव में हो ही ये रहा है कि सिर्फ अपनी पब्लिसिटी के लिए सब भाग रहे हैं .बहुत ही सही कटाक्ष करती हुई लघु कथा बहुत बहुत बधाई आद० उस्मानी जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2017 at 9:53pm
बहुत सही और तीखा कटाक्ष किया है आदरणीय..
Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 9:19pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,कम शब्दों में बहुत उम्दा और सार्थक लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 1, 2017 at 8:37pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी  साहब  , खूबसूरत लघुकथा के लिए दिली मुबारक़बाद 

Comment by Mohammed Arif on November 1, 2017 at 3:58pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन कटाक्ष । आजकल सब झूठी और अंधी दौड़ में लगे हैं । सभी को प्रतिष्ठा चाहिए । देश की चिंता किसे है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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