For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - यूँ ही गाल बजाते रहिये

यूँ ही गाल बजाते रहिये।
भोंपू सा चिल्लाते रहिये।

अपना उल्लू सीधा करके,
दो का चार बनाते रहिये।

जिससे काम बने बस वो ही,
पट्टी रोज पढ़ाते रहिये।

सूरज उगने ही वाला है,
ये एहसास कराते रहिये।

हम प्रतिपालक हम हैं रक्षक,
चीख चीखकर गाते रहिये।

जीती बाजी हार न जायें,
दाँव पेंच दिखलाते रहिये।

जिनको राह के रोड़े समझें
उनको रोज हटाते रहिये।

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Views: 931

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 24, 2017 at 1:29pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 24, 2017 at 1:27pm
आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी ग़ज़ल सराहना के लिये सादर धन्यवाद।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 24, 2017 at 1:25pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर धन्यवाद
Comment by SALIM RAZA REWA on October 24, 2017 at 12:53pm
आ.
अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद.
Comment by जयनित कुमार मेहता on October 24, 2017 at 12:37pm
उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको, आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 23, 2017 at 7:46pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आद० राम अवध जी शेर दर शेर बधाई लीजिये \ आद० समर भाई जी का सुझाव स्वागतीय है 

Comment by Samar kabeer on October 23, 2017 at 7:23pm
'दाँव पेंच दिखलाते रहिये'
इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'दाँव नये दिखलाते रहिये'
आपकी पूरी ग़ज़ल ही फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन पर है ।
ग़ज़ल के साथ अरकान भी लिख दिया करें,ये इस मंच का नियम है ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2017 at 6:41pm
आदरणीय कबीर साहब जी आपके इस्लाह के अनुसार मैं ग़ज़ल मेंसुधार कर लूँगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
"दाँव पेंच दिखलाते रहिये" क्या यह मिसरा फैलुन फैलुन वाली बह्र में है। यदि नहीं तो क्या सुधार करना आवश्यक है। क्योंकि यहाँ फायलात हो जाता है तख्ती करने पर।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2017 at 6:35pm
आदरणीय कुशक्षत्रप साहब ग़ज़ल की सराहना के लिये धन्यवाद . मैं लगभग दो साल बाद ओपेन बुक्स आन लाइन से पुन:जजुड़ा इसलिये बह्र लिखने का ध्यान नहीं रहा। भविष्य में अवश्य लिखूँगा।।
Comment by Samar kabeer on October 23, 2017 at 5:55pm
जनाब राम अवध जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
'ये एहसास कराते रहिये'
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
'ये एहसास दिलाते रहिये'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी। सादर अभिवादन स्वीकार करें। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार"
4 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Sanjay जी, अच्छा प्रयास रहा, बधाई आपको।"
7 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Aazi ji, अच्छी ग़ज़ल रही, बधाई।  सुझाव भी ख़ूब। ग़ज़ल में निखार आएगा। "
12 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
24 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
26 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Euphonic Amit जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई, बधाई आपको।  "आप के तसव्वुर में एक बार खो जाए फिर क़लम…"
31 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
37 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें भाई चारा का सही वज्न 2122 या 2222 है ? "
38 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें सातवाँ थोड़ा मरम्मत चाहता है"
43 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत ख़ूब। समझदार को इशारा काफ़ी। आप अच्छा लिखते हैं और जल्दी सीखते हैं। शुभकामनाएँ"
44 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
52 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
52 minutes ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service