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मैं हुआ बूढ़ा मगर अनुभव हुआ कुछ भी नहीं (तरही ग़ज़ल)

अरकान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

हर तरफ शिक़वा गिला है औऱ क्या कुछ भी नहीं
रात दिन की दौड़ में आख़िर मिला कुछ भी नहीं ||

इक नियम बदलाव का यारों सनातन सत्य है,
कल मिला है आज से पर राब्ता कुछ भी नहीं

ज़ीस्त का सच देख गोया बन्द मुट्ठी खुल गयी,
साथ अपने अंत में वह ले गया कुछ भी नहीं

बचपना लिपटा रहा ता---उम्र मुझसे इस क़दर,
मैं हुआ बूढ़ा मगर अनुभव हुआ कुछ भी नहीं

दूर होगी मुफ़लिसी यह सोचना तू छोड़ दे,
ये सियासी ख़्वाब है इसमें नया कुछ भी नहीं

कम से कम उसने छुआ तो होगा ही, यह सोच कर
मैं पढ़ा उसख़तको जिसपे था लिखा कुछ भी नहीं

सोच अपनी तर्क अपने और जैसी हो नज़र,
जान लो वरना यहाँ अच्छा बुरा कुछ भी नहीं

महफिलों में अब सुख़नवर यार मिलते हैं कहाँ?
पास उनके कुछ लतीफों के सिवा कुछ भी नहीं

कर्म करता जा हमेशा फल की चिंता छोडक़र,
ध्यान रखता है ख़ुदा वो छोड़ता कुछ भी नहीं

एक नाबीना मुसाफ़िर हूँ मैं राह-ए-जीस्त में,
"देखता सब कुछ हूँ लेकिन सूझता कुछ भी नहीं"

कहते थे सब पास उसके है करिश्माई छड़ी,
नाथ पर वो शोर-ए-दहशत से वरा कुछ भी नहीं

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on October 7, 2017 at 4:42am
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, आपके प्रशंशा से ग़ज़ल लिखना सार्थक हुआ। आभार आपका
Comment by नाथ सोनांचली on October 7, 2017 at 4:41am
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, आपके प्रशंशा से ग़ज़ल लिखना सार्थक हुआ। आभार आपका
Comment by नाथ सोनांचली on October 7, 2017 at 2:45am
आद0 सलीम रज़ा साहब आदाब, ग़ज़ल पर शिरकत और सुखनवाजी का शुक्रिया।
Comment by नाथ सोनांचली on October 7, 2017 at 2:44am
आद0 नीलेश जी गजल पर उत्साहवर्धन के लिए आभार
Comment by नाथ सोनांचली on October 7, 2017 at 2:43am
आद0 नीलेश जी गजल पर उत्साहवर्धन के लिए आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2017 at 11:21am

सुरेन्द्र कुशक्षत्रप भैया बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें| 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 4, 2017 at 7:48pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. सुरेन्द्र जी 
बधाई 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 3, 2017 at 8:17am
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 6:46pm
आद0 बासुदेव अग्रवाल नमन जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और सुखनवाजी का हृयतल से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 6:43pm
आद0 डॉ आशुतोष मिश्र जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और सुखनवाजी का हृदय से आभार।आपके सुझाव का तहेदिल से स्वागत है। अन्यथा जैसी कोई बात है ही नहीं। यह मंच की स्वस्थ परंपरा है। हम सब सीखने के दौर में हैं।

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