For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम लुटे हैं
हम ठगे हैं.. और ये होता रहा है पुरातन-काल से..
हम ठगाते ही रहे हैं..
उन हाथों ठगे जिन्हें
प्रकृति-मनुज का क्रमान्तर बताना था
काल-मनवन्तर रचना और बनाना था
वर्ग-व्यवहार निभाना था..
हम ठगे गये उन आत्म-अन्वेषियों/खोजियों के हाथों
छोड़ गये जो पीछे बिलखता समुदाय, पूरा समाज
परन्तु यह वर्त्त न पा सका एक मुसलसल रिवाज़
फिर, हम फिर ठगे गये उनसे
जिन्होंने अपनी रीढ़हीन मूँछों और अपनी अश्लील ज़िद के आगे
पूरे राष्ट्र को रौंदवा दिया.. और धरवा दिया रेहन पर हमारी अस्मिता को
हाँ, हम ठगे गये थे.
हम तब भी ठगे गये
जब इस पुरातन देश के
नये-नये, सुनहरे भविष्य की रूप-रेखाएँ खींची जानी थी
युगों-युगों की कथाएँ भींची जानी थी.
फिर ठगे गये हम उस समय भी
जब इस देश की कुल-परिपाटी की जानी थी तय
जब आँखों में थीं नम-आशायें और शिराओं में बह रहा था
अनुत्तरित भय
हम तब भी ठगे गये थे.
हम ठगाते ही रहे हैं.
उस समय भी जब
तथाकथित दूसरी आज़ादी का उद्भट्ट-उन्माद था
ओह.. हमारा वर्त्तमान बरबाद था..
उनके हाथों लुटे जो उस क्रान्ति के वाहक थे..
और उनके भी जो उस क्रान्ति के जायज-नाजायज साधक थे
हम फिर ठगे गये
जब एक सामंत बहुरूप ले फकीर बना था
इस देश की बलत्कृत तक़दीर बना था
कितनी माओं के बच्चे जल-कट-मर गये
वह तोप मग़र आज भी गरजती है
जिसकी पर्ची पर कई-कई राज़ खुलने थे
पर आजतक तह में रह गये.
हम फिर ठगे गये
जब दमितों के झण्डा-बरदारों ने हमारे कन्धों पर सायास कब्ज़ा कर लिया.
हम ठगे गये हर बार..
हम एक बार फिर
भोली, चिकनी सूरतों पर
माटी की ज़िन्दा मूरतों पर
बलि-बलि जा रहे हैं..
इन सूरतों के कई पालित-पोषुओं ने ठगी को विद्या का दर्ज़ा दे रखा है
हमने न चेतने की कसम सी खा रखी है
हम ठगी-दंश के पुरातन अपाहिज हैं
रे बाबा, रे बाबा..!
हमें न बताना
उठाना न जगाना
हम निश्चिंत हैं
दिवा-स्वप्नों में खोये-से
लापरवाह सोये-से.....

Views: 426

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 6, 2011 at 7:13pm

ठगाना हमारी नियति बन गई है,

और ठगना उनकी निति,

न हम अपनी नियति बदल रहे है,

और ना वो अपनी निति,

सौरभ भईया, जो छोभ, जो उबाल, जो एक हुक आपके मन में हिलोर मार रहा है उसको हम लोग भी बड़ी सिद्दत से महसूस कर पा रहे है, आपकी रचना सब कुछ कह सकने में समर्थ है, मैं शमशाद भाई की बातों से बिलकुल इतफाक रखता हूँ , शिल्प निभाने के चक्कर मे कथ्य ही न रहे ऐसी रचना किस काम की, रचना वाही जो आम जन को समझ में आये |

शानदार अभिव्यक्ति हेतु सौरभ भईया को बहुत बहुत बधाई |

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on June 6, 2011 at 6:37pm

सौरभ जी..मैं काव्य, छंद संरचना और शिल्प से अधिक कथ्य को मोल देता हूँ, किसी कविता में ये तमाम चीजें हो, गुनी रात दिन चर्चा करें और कथ्य न हो, मेरे लिये दो कौडी की है और समाज के लिये एक अड़चन, लिहाजा आपकी कविता का कथ्य प्रासंगिक है और यथार्थ का चमकीला शीशा दिखाता है कि आँखें चुधियाँ जायें...अभी तक संपादक महोदय नज़र नहीं आये?? सादर

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2011 at 6:31pm

..चिरकाल से सोयी हुई किसी कौम को जगाने की उत्कंठा, जिसके भीतर ग्लानि भी है और ज़ख्मों के खुरडों को खुरचने की चाह भी...एक चाह भी, कि बस एक बार और न ठगे जायें और कश्ती किनारे पहुँच जाये...

 

शमशाद भाई, जो है, जैसा है, वही आपने देखा, सो आभारी हूँ..

मैं इस रचना के प्रारम्भ में लिखने जा रहा था कि इस रचना में तथाकथित शिल्प या भंगिमा-शैली नहीं, सीधा-सीधा कथ्य देखिये.. क्षोभ महसूसिये. आप पेज तक आये इस हेतु पुनः-पुनः आभार.

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on June 6, 2011 at 6:25pm

ये कविता नहीं बल्कि किसी देश-राष्ट्र का काव्य पोस्टमार्टम है, चिरकाल से सोयी हुई किसी कौम को जगाने की उत्कंठा, जिसके भीतर ग्लानि भी है और ज़ख्मों के खुरडों को खुरचने की चाह भी...एक चाह भी, कि बस एक बार और न ठगे जायें और कश्ती किनारे पहुँच जाये....बहुत सार्थक कविता है, सौरभ जी, बधाई स्वीकार करें.सादर

Comment by Rash Bihari Ravi on June 6, 2011 at 4:56pm

रे बाबा, रे बाबा..!
हमें न बताना
उठाना न जगाना
हम निश्चिंत हैं
दिवा-स्वप्नों में खोये-से
लापरवाह सोये-से...

vah kya bat hain , saty 

Comment by Dr. Sanjay dani on June 6, 2011 at 9:22am
यथार्थ की सार्थक अभिव्यक्ति।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service