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221 2121 1221 212
इतनी जफ़ा शबाब पे लाया न कीजिये ।
मुझको मेरा वजूद बताया न कीजिये ।।

भूखें हैं नौजवान कटोरा है हाथ में ।
थाली किसी के हक़ की हटाया न कीजिये ।।

बेटा पढा लिखा के वो नीलाम हो गया ।
कोटे की राजनीति कराया न कीजिये ।।

अब न्याय क्या करेंगे कभी आप मुल्क से ।
झूठी तसल्लियों को दिलाया न कीजिये ।।

कुर्सी पे जात ढूढ के चेहरा दिखा दिया ।
गन्दा है जातिवाद सिखाया न कीजिये ।।

वो जल रहा है आज भी मण्डल की आग से ।
देकर हवा को और जलाया न कीजिये ।।

चेहरा बदल बदल के नहीं वोट मांगना ।
अपनी हकीकतों को छुपाया न कीजिये ।।

कैसे फरेबियों का यहां राष्ट्रवाद है ।
करते कहाँ हैं न्याय दिखाया न् कीजिये ।।

उनकी गरीबियों से उन्हें वास्ता ही क्या।
अब लाली पॉप दे के फँसाया न् कीजिये ।।

जीते चुनाव आप सवर्णो के नाम पर ।
संसद में इनका दर्द बढ़ाया न कीजिये ।।

वादा किया है पास करेंगे वो बिल भी आप ।
कोटे से मुल्क और मिटाया न कीजिये ।।

नावीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on August 7, 2017 at 8:40am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, लाजवाब ग़ज़ल और सामयिक शे'र । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह पर ग़ौर करें ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2017 at 7:29pm
आ0 कबीर सर सादर नमन ।बहुत बहुत आभार ।
Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 3:53pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'झूटी तसल्लियों को दिलाया न कीजिये'
इस मिसरे को यूँ कर लें :-
"झूटी तसल्लियाँ तो दिलाया न कीजिये"
'देकर हवा को और जलाया न कीजिये'
इस मिसरे को यूँ कर लें :-
"देकर हवाएं और जलाया न कीजिये"

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