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नूर की हिंदी ग़ज़ल-बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?

२१२२, २१२२,२१२ 
.
बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
.

सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
.

राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
.

देख कर इक कोमलांगी के अधर,   
कल्पना लेने लगी आकार क्या? 
.

आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.  

.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by narendrasinh chauhan on May 11, 2017 at 1:00pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. बहुत बधाईयाँ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 12:48pm

शुक्रिया आ. बसन्त जी 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 11, 2017 at 12:25pm

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी, बहुत ही प्रभावी अशआर निकले हैं आपकी लेखनी से, बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 11:29am

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब ...

Comment by Mohammed Arif on May 11, 2017 at 10:09am
वाह!वाह!! वल्लाह कमाल कर दिया आपने कटाक्षनुमा हिंदी की ग़ज़ल सौग़ात देकर । इन दिनों देश में IPL-T20और ओबीओ के मंच पर आदरणीय नीलेश "नूर"साहब की ग़ज़लों की T-20की दे धन धनाधन । अल्लाह करे ये दौर इसी तरह ज़ारी रहे ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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