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ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
.
देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 12:44pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2017 at 11:36am

आ. भाई नीलेश जी  इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें । साथ ही सार्थक बहस में उपस्थित सज्जनों का आभार जिससे बहुत कुछ सीखने को मिला ।

Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 9:02am
चलिये,दिख गया तो भला हुआ,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2017 at 8:10am

आ. मनन जी,
दिख रहा है वो तो :))))
.
सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 6:47am
बेवजह की दलीलें खीज का परिचायक हैं,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 11:26pm

आ. मनन जी ,
खीजता वो है जिस के पास दलीलें न हों 
सादर 


Comment by Manan Kumar singh on May 7, 2017 at 11:19pm
खीझ कोई हल नहीं,बचें।खीझ
मे कहा-सुना याद नहीं रहता,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 10:58pm

आ. मनन जी,
आप आ. समर सर की अंतिम टिप्पणी पढ़ें जिस में   वो मेरे कहे से सहमत हैं.... ....
मैं भी मानता हूँ कि लय बाधित होने जैसी कुछ विशेष परिस्थियों में ऐब है....(पहले भी लिखा है मैंने) ...लेकिन मेरे मिसरे में ये ऐब इसलिए नहीं है क्यूँ कि   ये आम बोलचाल का हिस्सा है .... 
इस के लिये ..मैंने सभी बड़े उस्तादों   के उदाहरण भी    दिए हैं......
आप अपनी बात कह चुके ..... उस पर मैंने अपनी   बात कह ली...... फिर आप विश्यान्त्र करते हुए ...पशु..अदालत..जज..अदावत तक आ गए ....
अत: आप से निवेदन है कि आगे का समय अपनी रचना पर दें.....
मेरी इस ग़ज़ल का जो होना था हो चुका....
मेरा मिसरा यही है..और यूँ ही रहेगा ...
आप जिसे मेरी ग़ज़ल में ऐब बताने पर आमादा हैं ..देख लें कि कहीं आप की किसी रचना  ही वो न हों जो आपके लिये "पर उपदेश कुशल बहुतेरे"  वाली स्थिति बना दे ...
सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 7, 2017 at 10:45pm
आदरणीय, विषयांतर आप हो रहे हैं,मैं नहीं।उस्ताद समर साहिब ने क्या फ़रमाया था,वह भी याद रखना लाजिमी है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 10:36pm

आ. मनन जी,
मेरी पोस्ट पर कोई कमेंट अनुत्तरित रह जाये तो ये कमेंट करने वाले की तौहीन होगी इसलिए चाहे ये चर्चा को तूल   दे...लेकिन ये करना आवश्यक है.....
मैंने आप से पहले भी निवेदन किया है कि अदब में अदालत को न लायें ...
आप ..लगातार विषयांतर कर रहे हैं.... बेहतर होगा कि आप ग़ज़ल पर ही रहें ...
रही बात ऐब की ..तो  मेरे द्वारा प्रस्तुत उदाहरण पर्याप्त प्रमाण है ..
सादर 

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