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मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो(ग़ज़ल 'राज')

१२१२  ११२२   १२१२  ११२

मेरी वफा का तुम्हें  कुछ ख़याल हो के न हो

इनायतों का खुदा की कमाल हो के न हो

 

मैं हो गई हूँ मुहब्बत में क्या से क्या ए सनम   

मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो

 

बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब

लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो

 

गुलाब  से ही मुहब्बत करे ज़माना यहाँ

शबाब उसमे है पूरा जमाल हो के न हो

 

कमाँ से कितने उछाले  हैं तीर भँवरे यहाँ

ये हाथ में है गुलों के विसाल हो के न हो

 

नजर नज़र से मिली सुखरू हुई वो कली 

हथेलियों ने मला वो गुलाल हो के न हो 

 

ग़ज़ल लिखी है लबों से तुम्हारे दिल पे सनम  

तुम्हारे दिल को भले अब मलाल हो के न हो

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 8:59pm

आद० समर भाई जी,ग़ज़ल पर हमेशा आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है आपके  मार्ग दर्शन  का सदैव स्वागत है मूल पोस्ट में आपकी इस्स्लाह के अनुसार संशोधन कर लिया है इसमें भी कर लूँगी |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपका भाई जी .

Comment by Samar kabeer on February 8, 2017 at 7:44pm
जनाब मिथिलेश जी के लिये नमूने का एक मतला:-
"उसी का ख़्वाब उसी का ख़याल नींद में है
जवाब जाग रहा है,सवाल नींद में हे '(कुँअर बेचैन)
Comment by Samar kabeer on February 8, 2017 at 7:40pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल उम्दा हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
छटे शैर में 'सुखरु' को "सुर्ख़रु" कर लें,टाइपिंग मिस्टेक है शायद ।अब आपने अरकान सही लिख दिये हैं,लेकिन रदीफ़ में 'हो के न हो' को " हो कि न हो"कीजिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 5:35pm

आद० मिथिलेश भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया .आपने सही ध्यान दिलाया भैया अरकान लिखते हुए दूसरी ग़ज़ल के हैं  दरअसल अरकान इस तरह हैं --१२१२   ११२२   १२१२   ११२ बह्र --मुजतस मुसम्मिन मखबून महजूफ़  है वो पोस्ट करते हुए गलत टाइप हो गए 

वो मिसरा भी इस तरह कर रही हूँ --नजर नजर से मिली सुर्खरू हुई वो  कली

इसको एडिट करके दुबारा पोस्ट करती हूँ ध्यान दिलाने का आपका बहुत बहुत शुक्रिया भैया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 5:09pm

आद० डॉ. आशुतोष जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से बहुत बहुत आभार शुक्रिया .  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 8, 2017 at 4:20pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. अशआर एक से बढ़कर एक हुए हैं. हार्दिक बधाई आपको. यह अवश्य है कि ग़ज़ल की बह्र १२१२  २१२२  १२१२  २२/११२ लग रही है किन्तु आपने १२१२  २१२२  १२१२  २१२ ली है. उस पर गुनीजन ही उचित मार्गदर्शन दे सकते हैं. मेरे हिसाब से बह्र १२१२  २१२२  १२१२  २२ लग रही है और इस आधार पर यह मिसरा मुझे बेबहर लगा-

//नजर नज़र से मिली हुस्न हो गए सुर्खरू//

टंकण त्रुटी== जबाब- जवाब 

हो सकता है बह्र पहचानने में मुझसे गलती हुई हो.  मेरे लिए यह बिलकुल नई बह्र है. यदि इस बह्र में कोई प्रसिद्द ग़ज़ल/गीत हो तो कृपया अवश्य साझा कीजियेगा. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2017 at 2:35pm

आदरणीया राजेश जी ..आज की आपकी इस शानदार ग़ज़ल को धीरे धीरे पढ़ा ..बहतु ही उम्दा ग़ज़ल है .

कमाँ से कितने उछाले  हैं तीर भँवरे यहाँ

ये हाथ में है गुलों के विसाल हो के न हो..

बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब

लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो....इन शेरो के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 

कृपया ध्यान दे...

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