For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - सबको ख़्वाबो से प्यार हो जाये

बह्र  2122  1212    22

सबको ख़्वाबों से प्यार हो जाये
तो ख़ज़ां भी बहार हो जाये ||

ये सियासत की आरजू है क्यूँ
देश यू पी बिहार हो जाये ||

गर लगे घर में बाहरी दीमक
टूटकर कुनबा ख़्वार हो जाये ||

यूँ न हो राजनीति में फ़ँस कर
अपने घर में दरार हो जाये ||

तेरे किरदार से न तेरी माँ
ऐके दिन शर्मसार हो जाये ||

जख्म को मत कुरेदो अब यारो
राख फिर से अँगार हो जाये ||

ज़ीस्त मतलब बदल न दे अपना
गर दराज़ इन्तिज़ार हो जाये ||

'नाथ' से दोस्ती करो खुलकर
ज़िन्दगी खुशगवार हो जाये ||

(मौलिक व् अप्रत्याशित)

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 9:39pm
आदरणीय गिरिराज भाई साहब सादर अभिवादन, आपकी उत्साह बढाती इस प्रतिक्रिया से मेरा हौसलाअफजाई हुआ है, आपका हृदय से आभार, आप सबकी बातों को ध्यान रखूँगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:32pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । अँगार और अंगार पर चर्चा अच्छ हुआ है , कुछ सीखने को मिला । आ. समर भाई का आभार ।

बस छूट आदत बन के दोष की सीमा न छूले , ये याद रखने वाली बात है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:32pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । अँगार और अंगार पर चर्चा अच्छ हुआ है , कुछ सीखने को मिला । आ. समर भाई का आभार ।

बस छूट आदत बन के दोष की सीमा न छूले , ये याद रखने वाली बात है ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 3:02pm
आद0 विजय निकोर जी ग़ज़ल को पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 3:01pm
आद0 समर कबीर साहब सादर अभिवादन, आपकी प्रशंसा पाकर धन्य हुवा, और लिखना सफल हुआ, आपने अँगार पर भी हमारा मार्गदर्शन किया, इसके लिए आपका ह्रदय तल से आभार।
Comment by vijay nikore on January 11, 2017 at 1:22pm

 अच्छी गज़ल के लिए बधाई, सुरेन्द्र जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2017 at 12:53am

आदरणीय समर कबीर जी, इस साझा एवं स्पष्टीकरण हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 9, 2017 at 3:05pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'अंगार'और "अँगार"के बारे में जनाब मिथिलेश जी का कहना दुरुस्त है, लेकिन इस बिंदु पर में ये कहना चाहता हूँ कि क़वायद से अलग हट कर शाइर के अपने कुछ इख़्तियारात भी होते हैं जिनका इस्तेमाल वो हस्ब-ए-ज़रूरत कर सकता है,मिसाल के तौर पर उस्तादों के उस्ताद जनाब 'सीमाब'साहिब का एक शैर देखिये:-
"ग़ैर मशरूत रिहाई मुझे दे दी 'सीमाब'
उसने मंज़ूर गुनाहों का कफ़ारा न किया"
इस शैर के सानी मिसरे में सही शब्द है "कफ़्फ़ारा"लेकिन सीमाब साहिब ने अपने शायराना इख़्तियारात का इस्तेमाल करते हुए इस शब्द को क़ाफिये की मजबूरी की वजह से "कफ़ारा"इस्तेमाल कर लिया ।
इसी तरह सब जानते हैं कि सही शब्द "बंट"है लेकिन कई शायरों ने इसे "बट"इस्तेमाल किया है,इस लिहाज़ से सुरेन्द्र साहिब ने भी अपने इख़्तियार से 'अंगार'को क़ाफिये की मजबूरी की वजह से "अँगार"इस्तेमाल कर लिया है,उम्मीद है बात कुछ स्पष्ट हुई होगी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2017 at 4:32am

आदरणीय ऐसा कोई शेर मैंने नहीं देखा जिसमें अँगार का प्रयोग हो और उसे वाव-ए-अत्फ़ या इज़ाफ़त या 'र' पर बिना मात्रा लगाये 121 के वज्न पर इस्तेमाल किया गया हो. मैंने अँगारा, अँगारों, अँगारी जैसे 122 वाले प्रयोग तो देखे हैं किन्तु अँगार का 121 वाला प्रयोग नहीं देखा इसलिए स्पष्ट नहीं हूँ. इस विषय पर गुनीजन ही मार्गदर्शन कर सकते हैं. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2017 at 3:35am
आद0 मिथिलेश जी सादर अभिवादन, आप के उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से बल मिलता। है, आपका ह्रदय तलसे आभार।

सर यहां अँगार लिया है न की अंगार, इसलिए मेरी समझ से काफिया हो जायेगा, चन्द्रबिन्दु लगा है, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
44 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
9 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service