For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आहुति – लघुकथा -

आहुति – लघुकथा -

गोविंदी को आज चार दिन हो गये बैंकों के चक्कर काटते हुए। हज़ार हज़ार  के चार नोट लेकर घूम रही थी। ना कोई सुनने वाला, ना कोई मदद करने वाला। तीन साल के इकलौते बच्चे को पड़ोसिन के सहारे छोड़ कर आती थी। एक एक पैसे को मुँह ताक रही थी। उसका मर्द ठेके पर मजदूरी करता था।  एक दिन भी नागा करना परिवार पर आर्थिक बज्रपात होता। घर खर्च चलाना दूभर हो रहा था। मगर आज गोविंदी कुछ मन में ठान कर आई थी। बैंक की लाइन में लगे हुए लोगों से बड़ बड़ा रही थी,

"भाई, कोई ऐसी तरक़ीब बताओ जिससे आज मुझे पैसा मिल जाय"।

"कल उस लड़की ने सबके आगे अपने कपड़े उतार दिये थे, तो पुलिस और बैंक वाले उसे अंदर ले गये और पैसे दे दिये। तुम भी कर लो"।

"नहीं भैया, यह तो मैं नहीं कर सकती। और कोई तरीका बताओ"।

एक नेता नुमा बंदे ने फ़ुसफ़ुसा कर कहा,

"मेरे पास इससे भी जोरदार तरीका है"।

"बताओ, जल्दी बताओ"।

उस नेता नुमा बंदे ने गोविंदी के हाथ में एक माचिस की डब्बी देते हुए कहा,

"अपनी साड़ी में आग लगा लो। हम लोग तुरंत आग बुझा देंगे। तुम्हारा काम हो जायेगा"।

गोविंदी तुरंत राज़ी हो गयी। अगले ही क्षण गोविंदी की साड़ी जल रही थी। साथ में गोविंदी भी जल रही थी। नेताजी गायब थे।

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on November 20, 2016 at 2:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी

Comment by vijay nikore on November 20, 2016 at 2:23am

बहुत ही दर्द्नाक हाल को जान देती हुई लघुकथा ... संदेश दे रही है

Comment by TEJ VEER SINGH on November 18, 2016 at 5:57pm

हार्दिक आभार विनोद जी, लघुकथा को समय देने के लिये। यह घटना घट चुकी है। समाचार पत्र और टी वी समाचार दौनों पर आ चुकी है।आपको शायद कोई परेशानी ना हो रही हो क्योंकि आप साधन संपन्न लोग हो। मगर मेरे आस पास इससे भी बुरे हालात हैं लोगों के।सादर।

Comment by विनोद खनगवाल on November 17, 2016 at 5:35pm

आदरणीय तेजवीर जी, कुछ ज्यादा ही अतिशयोक्ति हो गई है जिससे लघुकथा सत्यता से दूर चली गई माना कुछ परेशानी हो सकती है लेकिन हालात इतने भी बद्तर नहीं हुए हैं। 

Comment by Samar kabeer on November 17, 2016 at 2:44pm
जी,सही फरमाया आपने ।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 17, 2016 at 2:20pm

आदरणीय समर क़बीर साहब ,आप जिनकी बात कर रहे हैं वह तो गिने चुने अरब पति लोग हैं।उन लोगों को नेता लोग घर बैठे ही सारी सुविधायें मुहैया करते हैं।परेशान तो हम और आप जैसे लोग हैं।सादर।

Comment by Samar kabeer on November 16, 2016 at 10:12pm
हर दर्जे का नहीं जनाब,कोई शादी में 100 करोड़ लगा रहा है तो कोई 500 करोड़ ।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 16, 2016 at 9:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 16, 2016 at 9:12pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आपकी हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया।इन हालात में हर दर्जे का इंसान परेशान और दुखी है।आदाब।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 16, 2016 at 5:22pm
बढ़िया कथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी । बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service