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ईमानदारी (लघु कथा)

एक ही क्लास में पढ़े हुएI साथ साथ रहते बड़े हुएI मेरे दोस्त ने बेईमानी का रास्ता चुना और नजदीक के शहर में रहते हुए राजनेता बना और में ईमानदारी से गरीबी से लड़ते हुए टीचर बनाI लेकिन दोस्त की अच्छी बात ये रही की वो आज भी मुझसे बातें करता हैI और हर संभव मदद भी करता हैI और अपने शहर में आने का न्योता भी देता हैI आज उन से मिलने का प्लान बना लियाI बजाज का स्कूटर को बीस पच्चीस किक मारकर गर्म किया और अपनी भाग्यवान से धक्का मरवा कर चालू कियाI जैसे ही दोस्त के शहर पंहुचाI एक चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस ने रुकवाया और स्कूटर को एक तरफ कियाI

आव देखा ना ताव जल्दी से पाँच सौ का चालान बना कर थमा दियाI

ये क्या है? मैने पूछाI

मेरे पास हेलमेट, आर.सी. बुक, इंश्योरेंस, पी. यू. सी. नंबर प्लेट सब है तो चालान किस बात का?

पुलिस वाला झल्लाते हुए - क्योंकि आप ओवर स्पीड से चल रहे थेI

अब तो मुझे चक्कर आ रहे थे, क्योकि ये स्कूटर कभी तीस से ज्यादा चलता ही नहीं हैI उस के बाद मेने मेरी पूरी ईमानदारी की कहानी सुनाईI फिर भी नहीं मानाI तभी देखा एक बी.ऍम.डब्लू फर्राटा मारती वहाँ से निकली एका एक पुलिस वाले का हाथ ललाट की तरफ बढ़ गयाI

रहा नहीं गया इसलिए पूछ बैठा - बड़े साहिब थे क्या?

नहीं नहीं शहर के बड़े बिजनेसमैन थे, और तू ज्यादा बातें मत बना पैसे निकाल - तपाक से उत्तर मिलाI

अब तो कोई चारा नहीं थाI दोस्त को फ़ोन घुमाया, सोचा आज पता करते है कितनी धाक हैI जैसे ही फ़ोन उठाया, कहानी समझाकर पुलिस वाले के कान पर लगा दियाI अब तो मेरे कानों तक गालियां सुनाई दे रही थीI जैसे ही फ़ोन रखा धक्का मारकर स्कूटर को चालू करवाया और अगले चौराहे तक छोड़ कर गयाI और जाते जाते बोला - थोड़ा स्पीड में चलाया करोI

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by harikishan ojha on October 19, 2016 at 1:03pm

आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी  आप ने बारीकी से कथा को पढ़ा बहुत अच्छा लगा, आप का बहुत बहुत धन्यवाद  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2016 at 9:29pm
'स्पीड' वाले ही ट्रैफ़िक पुलिस को चकमा दे पाते हैं, ईमानदार नहीं! कुछ आदतन भ्रष्ट ट्रैफ़िक पुलिस वालों के रुटीन को चित्रित करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय हरिकिशन ओझा जी। संवादों में इन्वर्टेड कौमा का उचित प्रयोग अनिवार्य है। कहीं कहीं वाक्य-विन्यास भी प्रभावशाली नहीं हो सका है, सम्पादन की आवश्यकता लगती है। सादर

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