For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे

ग़ज़ल :- पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे

पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे ,

घाव जो गहरे थे अब बढ़ने लगे |

 

हमने जब पूछा कि कैसे हैं जनाब ,

खामखा ही मुझसे वो लड़ने लगे |

 

यूं ग़ज़ल की महफ़िलें सजने लगीं ,

नीद में हम काफिये गढ़ने लगे |

 

गलतियाँ आकार जब लेने लगीं ,

दोष अपना मुझपे वो मढने लगे |

 

इस ग़ज़ल के शेर हैं सोये हुए ,

आप सोये शेर से डरने लगे |

 

जो दुआएं दे नहीं सकते मुझे ,

नाम मेरे मर्सिये पढ़ने लगे |

 

वक्त है जलती चिता और राख हम ,

अश्क क्यों फिर आँख से झरने लगे |

 

आओ उन पौधों को सींचें आज फिर,

वक्त से पहले ही जो झड़ने लगे |

 

नाव नन्हें नन्हें हाथों देखकर ,

गड्ढे सारे शहर के भरने लगे |

 

{अभिनव अरुण की डायरी से}

 

Views: 418

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Noorain Ansari on August 9, 2011 at 12:19pm
बहूत सुंदर अभिब्यक्ति अरुण जी..
आपके लिखे हर ग़ज़ल मन के कागज पे गहरे छाप छोड़ते है..
Comment by Abhinav Arun on July 19, 2011 at 2:19pm

शशि जी हार्दिक आभार आपका !!आपका स्नेह मिलता रहे यही कामना है !!

Comment by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 10:48am
saari ki saari gajal hi bhut khubsurat aur ba-maayna hai. andaaz-e-byaan , lafzon ki lataafa lazeez hai.rachna ke liye prshansa ke hakdaar ho. sweekar karo.
Comment by Abhinav Arun on June 14, 2011 at 7:51pm

आभार श्यामल जी आपका यहाँ आना और टिप्पणी देना ही अपने आप में सुखद है !!बहुत बहुत शुक्रिया !!!

Comment by Shyam Bihari Shyamal on June 13, 2011 at 8:58am
बहुत जीवंत... अरुण अभिनव जी, आपने इस गजल में अच्‍छे भाव-प्रतीकों का प्रयोग किया है ...बधाई...
Comment by Abhinav Arun on May 18, 2011 at 2:08pm
abhaar satish jee !
Comment by satish mapatpuri on May 18, 2011 at 1:56pm

हमने जब पूछा कि कैसे हैं जनाब ,

खामखा ही मुझसे वो लड़ने लगे |

आओ उन पौधों को सींचें आज फिर,

वक्त से पहले ही जो झड़ने लगे |


सुन्दर अभिव्यक्ति  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service