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गुर (बस दो मिनट में )



दो मिनट में

नहीं लिख दी जाती
कोई कविता
जैसे नहीं बनती सब्जी
दो मिनट में बढ़िया
दो मिनट में तो
बनती है बस मैगी
जो सिर्फ पेट भरती हैं |

अपनी संतुष्टि के लिए
भले लिख दो
मिनट, दो मिनट में
कुछ भी अपने
अंतर्मन के भाव !

पर चाहिए तुम्हें यदि
सब की संतुष्टि
तो पहले उसे
कागज पर चढ़ाओ
फिर पकाओ
फिर जाके उतारो
अंगीठी से
धीरे-धीरे मध्यम आँच पर
पक जाती है कविता
कविता ही नही
कथा भी
और हाँ कहानी भी !

हर चीज की
तासीर के हिसाब से
दो उसे समय
फिर देखो
जो निकलेगी
वह होगी कोई
कविता या कहानी
जो दिलो में सबके
बस जाएगी
खाकर ऊँगली चाटने वाली कहावत
चरितार्थ कर जाएगी | सविता
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by savitamishra on October 3, 2016 at 1:36pm

समीर भैया जी तहेदिल से शुक्रिया | अभिवादन पहुँचे आपको हमारा ..|

Comment by savitamishra on October 3, 2016 at 1:35pm

आदरणीय गिरिराज भैया जी दिल से आभार आपका | सादर नमस्ते स्वविकार करें आशीष प्रदान करते रहें यूँ ही ..|

Comment by savitamishra on October 3, 2016 at 1:34pm

 गीत  रचना हंसी खेल सा कुछ नहीं यहसभी को मिला है शाश्वत दंड सा 
 टूटता है ह्रदय जब सुमन दंश से तब महकता है  नव- गीत श्रीखंड सा ----बहुत खूब कहीं आपने अंकल जी ..आभार आपका |
हमारी हंसी -खेल सी रचना पर इतनी बढ़िया टिप्पड़ी करने के लिए | सादर नमस्ते

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 4:58pm

आ  सविता जी , आपने बिलकुल सही बात कही | आंच से निकल कर ही सोना शुद्ध होता है |हार्दिक बधाई आपको |

Comment by Samar kabeer on October 2, 2016 at 4:20pm
मोहतरमा सविता जी आदाब,वाह बहुत ख़ूब, बहुत बढ़िया लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 4:19pm

आदरणीया सविता जी , बहुत सही बात कही , इस कविता सके लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 2, 2016 at 11:29am

वाह ----- गीत  रचना हंसी खेल सा कुछ नहीं यहसभी को मिला है शाश्वत दंड सा    

             टूटता है ह्रदय जब सुमन दंश से तब महकता है  नव- गीत श्रीखंड सा ----------बधाई आदरणीया .                                    

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