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ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना ---फिल्बदीह ग़ज़ल "राज '

मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना

तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना

 

वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है

तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना 

 

 कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे

होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना

 

ले लेगी  जान मेरी तेरी अदा  कसम से

इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना

 

पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे 

ज़ज्बात  के समंदर ऐसी शराब रखना

 

मैं खुश रहूँ वहाँ पर है तेरे हाथ में ही

चेहरे को अपने हर दम खिलता गुलाब रखना

 

मेरा हरेक लम्हा तेरी अदा के सदके   

बांहों में  चाँद दिल में इक आफ़ताब रखना 

--------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2016 at 6:54pm

आद० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by Samar kabeer on September 25, 2016 at 3:49pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:18am
वाह वाह वाह,,,, आद. राजेश कुमारी जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल। शेर दर शेर मुबारकबाद
Comment by Mahendra Kumar on September 24, 2016 at 11:53pm
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है आदरणीय राजेश मैम। हार्दिक बधाई प्रेषित है, सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 24, 2016 at 9:07pm

शिज्जू भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद  आई मेरा लिखना सार्थक हो गया | बह्र लिखना भूल गई थी अतः यहाँ लिख रही हूँ 

बहर-ए-मजारअ मुसम्मिन अखरब --२२१  २१२२  २२१ २१२२  

आपका बहुत बहुत आभार | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2016 at 6:24pm

आ. राजेश दीदी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको, बहर भी लिख देतीं तो सभी को फायदा होता :-)

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