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एक मृत लड़की की चिठ्ठी

मेरे पापा ने
माँ का गर्भ जांच कराया
सांप सूंघ गया उन्हें
शुक्र हो डाक्टर का
उन्होंने कहा ...
"एक ही बार माँ बन सकती है
आपकी पत्नी "
भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥

मेरी माँ ने
सिल्क साडी पहननी छोड़ दी
शौक -मौज फुर्र्र
मेरे विवाह की चिंता में
जन्म से ही ॥

पढाई के दौरान
प्यार हो गया एक लड़के से
शादी का लालच दिया उसने
माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े
दहेज़ के लिए
यह सोच , भाग गयी उसके साथ ॥

वापस लौटी
मैं लुट चुकी थी
खूब जग -हँसाई हुई
पंखे में फन्दा डाल
मैं झूल गयी ....
मगर , माँ ने बचा लिया ॥

मेरी विवाह हुई
अपरिचित की दुनियां पहुंची
मेरा पति
रात को विछावन पर
मिट्ठी -मिट्ठी बातें करता
सुबह बदल जाता ॥
मांग क्या भरी
रूपये की रोज मांग होती
माँ -बाप को बुरा -भला कहते ॥

बेटी परायी होती है
बचपन से सुनती थी
कही भाग भी नहीं सकती ....

माँ ...
ससुरालवालों ने
मुझे ज़हर दे दिया एक दिन
मैं मर गयी
क्योकि इस बार तुम नहीं थी
मेरे पास , मेरे बचाने को ॥

माँ ...
कल अख़बार में
देख लेना मेरा नाम ॥

उनलोगों ने
पुलिस से मिल कर
हत्या को आत्म- हत्या में
बदल दिया होगा ...

माँ ....
क्या तुममे
पुलिस और नयायालय से
लड़ने की कूबत है ??

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Comment

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Comment by Neelam Upadhyaya on June 25, 2010 at 9:49am
"उनलोगों ने
पुलिस से मिल कर
हत्या को आत्म- हत्या में
बदल दिया होगा ...

माँ ....
क्या तुममे
पुलिस और नयायालय से
लड़ने की कूबत है ?? "

bahut hi marmik kavita. Babban ji ko bahut bahut sadhuwaad.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 24, 2010 at 10:07pm
बब्बन भईया सचमुच झकझोर दिया है आपने, एक माँ बाप की बेबसी, बेटी की बेचारगी, पति की नामर्दी, ससुराल पक्ष वालो की दरिंदगी,सब कुछ तो है आप की कविता मे, क्या नहीं है ? बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, एक शानदार रचना, बहुत बहुत धन्यवाद है इस रचना पर,
Comment by Rash Bihari Ravi on June 24, 2010 at 4:32pm
उनलोगों ने
पुलिस से मिल कर
हत्या को आत्म- हत्या में
बदल दिया होगा ...

माँ ....
क्या तुममे
पुलिस और नयायालय से
लड़ने की कूबत है ??

sir ji aapne dil ko hila ke rakh diya ,

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