For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज

वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |

वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश

परदेशी हम देश में, लगता है परदेश  |

लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग

हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |

हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद

अंग्रेज भी किये नहीं,  तू सुन अंतर्नाद |

संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार

स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |

बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल

लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल |

हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान

विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान ?

प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार

जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार |

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 1742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 10:26pm

आदरणीय रामबली जी , विस्तृत विश्लेषण के लिए धन्यवाद | आपका कहना् बिलकुल सही है कि प्रत्येक दोहा अपने आप में पूर्ण होता है ; किसी दुसरे दोहे पर निर्भर नहीं होता है जैसे ग़ज़ल का हर शेर;  पंरतु कुछ मुसल्सल ग़ज़ल  होते हैं जिसमे परोक्ष रूप में अर्थ की दृष्टि से एक दुसरे से जुड़े होते हैं | मैंने यहाँ एक ही विषय पर सभी दोहे लिखे हैं जिसका विषय है आज का "लोकतंत्र " शीर्षक से | इसीलिए पढ़ते वक्त पाठक के दिमाग में  राजनीतिक दृश्य ही घुमती रहेगी ; इसीलिए आज़ादी के बाद बुनियाद को किसने हिलाया और किसको अंतर्नाद सुनने के लिए कहा गया है,समझने में किसी को दिक्कत नहीं होगी | परिवार वाद से जुड़े सभी को रक्तबीज के संतान कहा गया है, जिनकी संताने आजादी के बाद से एक के बाद सत्ता पर आसीन होते आ रहे है | इसे भी समझने में किसी दिक्कत नहीं होगी | हाँ आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ कि हर दोहा जब अलग से पढ़ा जाय तो उसका अर्थ बिना किसी  दिक्कत के समझमें आना चाहिए | इसका प्रयास करेंगे | सादर        

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 9:52pm

आदरणीय  सुशील समा जी, दोहे आपको अच्छे लगे जानकर ख़ुशी हुई |  प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 9:48pm

आदरणीय समर साहिब आदाब  और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं | ईद मुबारक हो आपको और सभी बंधुओं को |

दोहे की तारीफ के लिए तहे दिल से धन्यवाद | आपके सुझाव के अनुसार सुधार कर रहा हूँ | सादर  

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 5:45pm
जनाब रामबली गुप्ता साहिब आदाब,में तो आपकी बात पूरी तरह समझ गया कि जिस तरह ग़ज़ल का हर शैर अपने आप में इकाई का दर्जा रखता है ठीक उसी तरह दोहा भी अपने आप में इकाई का दर्जा रखता है,आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comment by रामबली गुप्ता on September 13, 2016 at 4:47pm
अव्वल तो आदरणीय कालीपद भाई जी को सुंदर प्रयास के लिए दिल से बधाई।
जहां तक आदरणीय समर भाई साहब का विश्लेषण है मैं उससे पूरी तरह सहमत हूँ। साथ ही बताना चाहूँगा कि ग़ज़ल के शेरों की भाँति हर दोहा भी अपने आप में एक मुकम्मल संदेश/भाव रखता है। यदि किसी दोहे के भाव किसी अन्य दोहे के भावों पर आश्रित हों तो यह त्रुटिपूर्ण होगा। तातपर्य यह है की कोई दोहा चाहें अकेले हो या दोहों के समूह में पूर्णतया स्वतंत्र ख्याल रखते हैं। आपका यह दोहा लीजिये
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद।
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद।।
यदि आप किसी पाठक के सम्मुख सिर्फ यह दोहा रखें तो पाठक के मन में कुछ सवाल इस प्रकार उठेंगे-
1-किसने बुनियाद को हिला दिया?
2-कौन अंतर्नाद सुने और क्यों? आदि
इसी प्रकार इस दोहे को लीजिये-
हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान।
विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान ?

अब पाठक के मन में एक सवाल ये होगा की
किसके पद पर और किसके परिवार के सदस्य?
कौन रक्तबीज संतान?
इसी प्रकार एक-दो और दोहों में यही स्थिति है।
वास्तव में इन दोहों के वास्तविक भावार्थ अन्य दोहों के भावों पर आश्रित हैं जो उचित नही।सादर
Comment by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 12:34pm

आदरणीय वर्तमान को चित्रित करते सार्थक दोहों के लिए हार्दिक बधाई। आ. समर कबीर साहिब द्वारा इंगित की गई त्रुटियों से मैं सहमत हूँ। 

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 11:33am
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,अच्छे दोहे हुए,बधाई स्वीकार करें ।
"वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश"इस पंक्ति में व्याकरण दोष लगता है,देखियेगा ।
तीसरे दोहे की पहली पंक्ति में 'हर लिया'को "हर लिये और दूसरी पंक्ति में 'बैठा दिया' को "बैठा दिये"होना चाहिये ।
छटे दोहे की पहली पंक्ति में'ख़ुद का अपना ढाल'को इस तरह होना चाहिए "ख़ुद की अपनी ढाल" "ढाल"स्त्रीलिंग है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service