For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अधूरे सपने धोती रहीं.....

अधूरे सपने धोती रहीं .....

मैं तो जागी सारी रात
तूने मानी न मेरी बात
कैसी दी है ये सौगात
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं

झूमा सावन में ये मन
हिया में प्यासी रही अग्न
जलता विरह में मधुवन
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं.....


नैना कर बैठे इकरार
कैसे अधर करें इंकार
बैरी कर बैठा तकरार
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं


मन के उड़ते रहे विहग
प्रीत में ये दृग भूले जग
स्मृति कैसे करूं अलग
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं


फिर घिरने लगा है तम
हो गई आहट भी निर्मम
कैसे भूलूँ तुम्हें बलम
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 29, 2016 at 12:50pm

धन्यवाद आदरणीय रक्ताले जी भाई साहिब  ... बहुत सुंदर एडिटिंग हुई है  ... इसमें हम स्वप्न अधूरे भी कर सकते हैं और  अधूरे सपने भी कर सकते हैं  ... मैं आपके सुझाव को मानते हुए प्रस्तुति को एडिट कर पुनः प्रेषित कर रहा हूँ।  आपके सुझाव का तहे दिल  से शुक्रिया। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2016 at 10:45pm

जी ! साहब. अभी भी 'वो' खटक ही रहा है. एक सुझाव इस तरह है.सादर.

मैं तो जागी सारी रात
तूने मानी न मेरी बात
कैसी दी है ये  सौगात
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं

Comment by Sushil Sarna on July 28, 2016 at 7:22pm

आदरणीय रक्ताले जी भाई साहिब आपकी उपस्थिति ने रचना पर अपनी सुझावात्मक एवं प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से जीवनदान दे दिया है, आपका तहे दिल से शुक्रिया। अपने जिस बिंदु पर संशय प्रकट किया है उसे यदि इस प्रकार कर दिया जाए तो कैसा रहेगा :
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
वो स्वप्न अधूरे धोती रही.........

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2016 at 3:13pm

आदरणीय सुशील सरना जी सादर  नमन, बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. 

कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं 
स्वप्न नयन के धोती रहीं...............इन स्थायी पंक्तियों में ऐसा प्रतीत हो रहा है रो दोनों आखें रही है और सपने एक आँख के धो रही है. मुझे  लगता है बेहतर होगा यदि नयन शब्द का वहां प्रयोग न कर कुछ और शब्द ले लिया जाए. सादर.

Comment by Sushil Sarna on July 28, 2016 at 2:56pm

मेरे प्यारे दोस्तों प्रस्तुति को  किसी का आशीर्वाद  न मिलने से लगता है इस पोस्ट को यहां से डिलीट कर दूं। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"कू-ब-कू है ख़बर, हुआ क्या हैपर ये अख़बार ने लिखा क्या है । 1 जो परिंदे क़फ़स में जीते हैंउनको मालूम है…"
5 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी आदाब, "मौन है बीच में हम दोनों के"... मिसरा बह्र में नहीं…"
22 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। बेवफ़ाई ये मसअला…"
28 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय अमित…"
35 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 - 1212 - 22/112 देखता हूँ कि अब नया क्या है  सोचता हूँ कि मुद्द्'आ क्या…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदाब, मुसाफ़िर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई खूँ सने हाथ सोच त्यों बर्बर सभ्य मानव में फिर नया क्या है।३।…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशायरा का आग़ाज़ करने के लिए दाद के साथ…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, ध्यान दिलाने का बहुत शुक्रिया। ग़ज़ल दोबारा पोस्ट कर दी है। "
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमन, रिया जी , खूबसूरत ग़ज़ल कही, आपने बधाई ! मतला भी खूसूरत हुआ । "मूसलाधार आज बारिश है…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या हैअपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले वो…"
2 hours ago
Prem Chand Gupta replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"इश्क में दर्द के सिवा क्या है।रास्ता और दूसरा क्या है। मौन है बीच में हम दोनों के।इससे बढ़ कर कोई…"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service