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ग़ज़ल ( ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है )

१२१२२ - १२१२२

हंसी न अश्कों की धार में है ।

वफ़ा फ़क़त एतबार में है ।

लबों पे मुस्कान आँख है नम

ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है ।

लिपटना आता कहाँ है गुल को

ये ख़ास खसलत तो खार में है ।

निकाल दूँ अपने दिल से  उनको

कहाँ मेरे अख्तियार में है ।

जो देख ले खोए होश अपना

कशिश वो  रूए निगार में है ।

जुनूने दीदारे यार  देखो

खड़ा वो कल से कतार में है ।

कहाँ है तस्दीक यह अता कम

तू अब भी उनके शुमार में है ।

(मौलिक व अप्रकाशित ) 

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 11, 2016 at 9:43pm

जनाब सुनील साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by shree suneel on July 11, 2016 at 9:13pm
जुनूने दीदारे यार देखो
खड़ा वो कल से कतार में है ।... क्या बात है!
इस अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आपको आदरणीय तस्दीक अहमद साहब. सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 10, 2016 at 6:45pm

मोहतरम जनाब समर कबीर  साहिब आदाब ,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का  बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 10, 2016 at 6:43pm

मोहतरम विजय साहिब ,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का  बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Samar kabeer on July 10, 2016 at 6:07pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by vijay nikore on July 10, 2016 at 2:27pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय तस्दीक अहमद जी। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 8, 2016 at 7:06pm

मोहतरम जनाब  रवि   साहिब ,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 8, 2016 at 7:04pm

मोहतरमा राहिला   साहिबा ,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 8, 2016 at 7:02pm

जनाब महेंद्र  कुमार   साहिब,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 8, 2016 at 7:02pm

जनाब सुरेश कुमार   साहिब,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---

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