For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - दाग़ सभी के कुर्ते में -- ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22  22  2

.

मेरा ओछा पन भी उनको झूम झूम के गाता है

जिन शेरों में कुत्ता –बिल्ली, हरामजादा आता है

 

वफा और समझ का मानी एक कहाँ दिखलाता है

रख के टेढ़ी पूँछ भी कुत्ता इसीलिये इतराता है

 

खोटे दिल वालों की नज़रें, सुनता हूँ झुक जातीं हैं

और कोई बातिल सच्चों में आता है, हकलाता है  

 

वो क्या हमको शर्म- हया के पाठ पढ़ायेंगे यारो

जिनको आईना भी देखे तो वो शर्मा जाता है

 

सबकी चड्डी फटी हुई है, दाग़ सभी के कुर्ते में

जो जिसका सिलता- धोता है, वो ही उसको भाता है

 

पीस रहा है दाल अगर कोई अंधा सिल बट्टे में

तो फिर पीसी दाल ज़ियादा कुत्ता ही खा जाता है

 

शहर हमारा बँटा हुआ है बस्ती, डेरों- खेमों में

फूटी आँखों से भी कोई, किसको कहाँ सुहाता है

 

मेरी आँखों से नींदों-ख्वाबों की बातें मत करना

मेरी क़िस्मत में सदियों से लिक्खा ही जगराता है

 

किसी तसव्वुर को घुसने की नहीं इजाज़त दी हमनें

जो कुछ देखा, सुना- पढ़ा है वो ही लिक्खा जाता है

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 904

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:45pm

आदरणीया राहिला जी , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।

Comment by Rahila on July 4, 2016 at 3:34pm
"वो क्या हमको शर्म- हया के पाठ पढ़ायेंगे यारो
जिनको आईना भी देखे तो वो शर्मा जाता है"बेहद उम्दा शेर वाह...!,और क्या खरी,खरी उतारी है पन्नों पर ग़ज़ल। बहुत खूब।हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी!सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:13pm

आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:12pm

आदरणीय रवि भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ! और बाक़ी एक ही बात कहूँगा कि चलन ऐसी ही है -'' महाजनो येन गतो सपंथा ''

वैसे अगर आप शेर को गहराई से समझें तो मै आपके पाले मे ही दिखूँगा । कीचड़ मे फँसे को निकालने के लिये कभी कीचड़ मे उतरना भी पड़ जाता है , और इसी बात से लोग डरते हैं ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:08pm

आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , सराहना और विस्तार से प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 1:49pm

आदरणीय भाईसाब ..वर्तमान परिदृश्य को ग़ज़ल के माध्यम से बखूबी चित्रित करने में आप सफल रहे हैं ..खरे खरे अंदाज में खरी खरी बातें पढ़कर आनंद आ गया ..इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Ravi Shukla on July 4, 2016 at 1:18pm

आदरणीय गिरिराज जी  बहुत बहुत बधाई आपको इस गजल के लिये बेहद तीखे तंज है व्‍यवस्‍था के लिये । बुरे को बुरा कहने के लिये बुरे शब्‍द इस्‍तेमाल करना शायद मजबूरी हो । शब्‍दतो उसी बारहखड़ी का हिस्‍सा है उससे कोई भी शब्‍द बाहर नहीं है किन्‍तु उनके अर्थ हमारे मानस पर अलग तरह से प्रभाव डालते हैै । गजल जैसी सिन्‍फे नाजुक में कटु अर्थ के अल्‍फाज काा प्रयोग कभी रुचिकर नहीं लगा चाहे किसी भी सोशल माध्‍यम पर हो प्रिंट माध्‍यम पर हो । मंच से हो । भाषाई सौंदर्य बनाये रखने का प्रयास होना चाहिये । यह कोई व्‍यकितगत टिप्‍पणी नहीं है बस आपकी गजल पढ़ी तो उसके हवाले से बात निकली तो साझा करली ।  गजल के लिये पुन: बधाई स्‍वीकार करें । 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on July 4, 2016 at 12:19pm

प्रिय गिरिराज

दुनिया मतलबी चापलूसों झूठे मक्कारों की है बहुमत भी उन्हीं का है, लोकतंत्र में बहुमत का ही महत्व है इसलिए ऐश भी वही कर रहे हैं।सीधा सरल सच्चा व्यक्ति तो रोज सुबह स्वयं और परिवार को जिंदा पाकर ही खुश हो जाता है।

खोटे दिल वालों की नज़रें, सुनता हूँ झुक जातीं हैं

और कोई बातिल सच्चों में आता है, हकलाता है ........

आजादी पूर्व तक ये पंक्तियाँ भले ही सही रही हो आज की दुनिया तो दबंगों की है। न्याय पर भी भरोसा उठता जा रहा है।

एक उदाहरण ....... किसी के यहाँ आयकर के छापे पड़ जाय और करोड़ों अरबों का घपला हो  तो लड़की और लड़के वालों की लाइन लग जाती है उस परिवार से रिश्ता जोड़ने के लिए । जाति धर्म शिक्षा नौकरी सब भूल जायेंगे। अब कोई नहीं शर्माता सभी बेशरम हो चुके हैं।

`जिनको आईना भी देखे तो वो भी शर्मा जाता है

हार्दिक बधाई इस गजल के लिए, विधा पर तो जानकार ही टिप्पणी करेंगे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service