For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आक्रोश – (लघुकथा) –

आक्रोश – (लघुकथा) –

" रूपा, तू यहाँ, रात के दो बजे! आज तो तेरी सुहागरात थी ना"!

"सही कह रही हो मौसी, आज हमारी सुहागरात थी! तुम्हारी सहेली के उस लंपट छोरे के साथ जिसे तुम बहुत सीधा बता रहीं थी! बोल रहीं थीं कि उसके मुंह में तो जुबान ही नहीं है"!

"क्या हुआ, इतनी उखडी हुई क्यों है"!

"उसी से पूछ लो ना फोन करके, अपनी सहेली के बिना जुबान के छोरे से"!

"अरे बेटी, तू भी तो कुछ बोल! तू तो मेरी सगी स्वर्गवासी  बहिन की इकलौती निशानी है"!

"तभी तो तुमने उस नीच के साथ रिश्ता करा दिया"!

"अरे पर अब कुछ बता भी कि हुआ क्या"!

"मुझसे कहता है कि सुहाग रात तभी होगी जब तू मुझे सच सच बतायेगी कि अब तक कितने लोगों के साथ सुहागरात मना चुकी है"!

"हाय राम, ऐसा बोला बदमाश, देखने में तो कितना सीधा लगता है! फ़िर तूने क्या कहा"!

"मैंने भी साफ बोल दिया कि पहले तू अपनी रंग रेलियों की दास्तान सुना, तो बोलता है तेरी इतनी हिम्मत"!

"फिर क्या हुआ मेरी बच्ची"!

"फिर बोला कि सुहागरात में अगर चादर में खून का दाग नहीं लगा तो लात मार कर भगा दूंगा"!

"उसकी ये मज़ाल ! फिर तूने क्या कहा"!

"मौसी अपना तो भेजा घूम गया!उसके पिछवाड़े में दी कस कर एक लात! वो गिरा औंधे मुंह पलंग के नीचे और रूपा फ़रार"!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on June 18, 2016 at 2:21pm

हार्दिक आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी!

Comment by Nita Kasar on June 18, 2016 at 10:26am
पुरुषार्थ और पुरूष के अहम् व वहम् को बेबाक़ी से चोट करती कथा है ,आखिर लड़की ही क्यों लाजवंती बनी रही,यही सवाल मन में कथा ओ बी ओ के विषय पर आधारित है तो जल्द यहाँ आने की वजह ?फिलहाल बधाई आद०तेजवीर भाई जी
Comment by kanta roy on June 18, 2016 at 10:25am

 मुझी  आपकी  ये  कथा  बहुत  पसंद  आई है आदरणीय तेजवीर  जी . इस लेखन  के  लिए जिगर की  जरुरत  थी . एक  स्त्री  के  हाथों ये  लिखा  जाता  तो  जाने  कितनी  मर्यादाओं और नैतिक मूल्यों  को  तोड़ने  की  दुहाई  दी  जाती लेकिन  इस  तरह  की  कथा का  पुरुष के  द्वारा  लिखा  जाना ,मुझे हमारे मैथिलीशरण गुप्त  जी  हठात याद  आ  गए की  स्वयं  पुरुष  होने  के  बावजूद  भी  सदा स्त्री  पक्ष को  मजबूत  बना  कर  पुरुष प्रवृत्ति पर  प्रहार  किये  थे . ह्रदय  से  बधाई  आपको प्रेषित  करती  हूँ . सादर 

Comment by maharshi tripathi on June 18, 2016 at 10:12am
जो बेबाक लेखन आपने किया उससे कहीँ ज्यादा बेबाक रूपा है,ऐसे लोगों का यही हश्र होना चाहिये,हार्दिक बधाई आपको !!!
Comment by TEJ VEER SINGH on June 18, 2016 at 9:42am

हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी! आपको लघुकथा अच्छी लगी! आपने बेहतरीन  सारगर्भित व्याख्या की! उसके लिये पुनः आभार!गोष्ठी आयोजन के लिये और दूसरी लघुकथा तैयार करूंगा!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2016 at 8:18pm

आ० तेजवीर सिंह जी ,विषय से न्याय करती हुई लघु कथा है एक दम से अलग कथानक किन्तु सच्चाई है लघु कथा में आज भी इस मिथ्या धारणा के कारण कई रिश्ते टूट जाते हैं या जिन्दगी भर ढोए आते हैं मेडिकल साईंस के तत्थ्य को पढेलिखे लोग तो स्वीकारते हैं किन्तु अनपढ़ या गाँव में रहने वाले अभी तक इसी धारणा पर टिके हैं इसको वर्जिनिटी का सिम्बल मानते हैं जो हमेशा सही नहीं होता |लघु कथा में आज की स्वाभिमानी लड़की का चित्रण बहुत शानदार लगा | शानदार लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई |आयोजन से पहले ब्लॉग पर क्यूँ पोस्ट की है आपने क्या उस वक़्त नेट पर नहीं रहोगे ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service