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दोहो का उपकार

सदा सूफियाना गज़ल, गम को करके ध्वस्त.

शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१

मंदिर  की  श्रद्धा  लिये  खड़ी  दीप- जयमाल.

वरे नित्य सुख- शांति को,  रखे प्रेम खुशहाल.२

मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.

मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३

पश्चिम  का  तारा  उदय, हुआ ईद का चांद.

उन्तिस  रोज़ो  से  डरा, छिपा शेर की मांद.४

रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.

उन्तिस दिन के बाद फिर, ईद हुई गुलज़ार.५

मौलिक व अप्रकाशित

रचनाकार.....केवल प्रसाद सत्यम

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 12, 2016 at 9:09pm

आ०   ब्रजेश भाई जी, प्रणाम!    आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 12, 2016 at 9:09pm

आ०   सौरभ सर जी, प्रणाम!   आपका मार्गदर्शन सदैव ही  सतपथ कीओर ले जाता है.  इस स्नेह हेतु आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 12, 2016 at 9:06pm

आ०  आशुतोष भाई जी, प्रणाम!    आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 12, 2016 at 9:06pm

आ०  रामबली भाई जी, प्रणाम!    आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2016 at 5:15pm

बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 12, 2016 at 4:30pm

सदा सूफियाना गज़ल, गम को करे शिकस्त
शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१...... शिकस्त दी जाती है. शिकस्त की जाती है, ऐसा नहीं होता.

मंदिर की श्रद्धा लिये खड़ी दीप- जयमाल.
वरे नित्य सुख- शांति को, रखे प्रेम खुशहाल.२...... इस छन्द का कर्ता कौन है ? बिना कर्ता के छन्द या शेर हल्के माने जाते हैं, भाईजी..

मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.
मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३................ जी, बहुत अच्छा !

पश्चिम का तारा उदय, हुआ ईद का चांद.
उन्तिस रोज़ो से डरा, छिपा शेर की मांद.४......... उदय संज्ञा है. जबकि वहाँ क्रिया की आवश्यकता थी. तभी तो पहले पद के सम चरण की तार्किकता बनेगी. दूसरा पद तनिक और स्पष्टता चाहता है. तभी शेर की माँद में छिपा तारा यदि उगे तो प्रसन्नता ईद के रूप में प्रस्फुटित होती अच्छी लगेगी. चाँद और माँद सही अक्षरी हैं.

रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.
उन्तिस दिन के बाद फिर, ईद हुई गुलज़ार.५............ ’फिर’ का होना यह ज़ाहिर करता है, गोया मात्र २९ दिन ही के लिए ईद ग़ुलज़ार नहीं थी. बाकी दिन ग़ुलज़ार रहा करती है. ’फिर’ को ’लो’ या ऐसा कुछ कहकर सार्थकता बरती जा सकती है.

प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाइयाँ केवल प्रसाद जी..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 12, 2016 at 3:29pm

आदरणीय केवल भाई जी ..इन दोहों में जो संदेश अपने दिया है काबिले तारीफ़ है इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on June 11, 2016 at 12:07pm
हर दोहा शानदार है आदरणीय।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 10, 2016 at 7:31pm

आ०   रवि भाई जी, प्रणाम!    आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 10, 2016 at 7:30pm

आ० शहज़ाद भाई जी, प्रणाम!    आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार. सादर

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