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उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया- ग़ज़ल

221 2121 1221 212
उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया
और उसके बाद रंज छुपाया नहीं गया

जो दर्द से नजात दिला सकता था मुझे
वो लफ़्ज़ अपने होंठों पे लाया नहीं गया

अश्कों की रोशनाई में लम्हे डुबो-डुबो
दिल के वरक़ पे लिक्खा मिटाया नहीं गया

तू तो ग़लत न था ये जहाँ सरगिराँ सही
सर किसलिये बता कि उठाया नहीं गया

इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया

(रोशनाई- इंक; सरगिराँ- नाखुश)

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 3:24pm

सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय सिज्जू जी | बधाई | 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 3:24pm

सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय सिज्जू जी | बधाई | 

Comment by Sushil Sarna on May 3, 2016 at 1:13pm

इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया

वाह सर वाह .... दिल को छूते अशआर .... दिल को भा गयी आपकी ये दिलकश ग़ज़ल ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय शिज्जु शकूर भाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 2, 2016 at 9:54pm
आदरणीय बाग़ीजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपकी उपस्थिति हमेशा उत्साहित करती है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 2, 2016 at 9:53pm
जनाब नादिर खान साहब, भाई जयनित मेहता जी ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 2, 2016 at 9:52pm
आदरणीय सौरभ सर रचना को समय देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 2, 2016 at 9:51pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 2, 2016 at 9:42pm

//इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया//

वाह वाह, क्या बात है, यह शेर बहुत ही खुबसूरत लगा, शेष अशआर भी अच्छे लगें, बधाई आदरणीय सिज्जू भाई इस खुबसूरत ग़ज़ल पर.

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 6:57pm
आ. शिज्जु जी, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने। आखिरी शेर तो लाजवाब बन पड़ा है। बहुत बधाइयां आपको।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 6:57pm
आ. शिज्जु जी, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने। आखिरी शेर तो लाजवाब बन पड़ा है। बहुत बधाइयां आपको।।

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