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दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की ख़ातिर- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान – 1222 1222 1222 1222

 

सभी आते हैं घर मेरे महज़ दीदार की खातिर|

दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की  ख़ातिर|

 

सुना है दान वीरों में भी उनका नाम आता है,

मगर वो दान करते है तो बस जयकार की  ख़ातिर|

 

वो मंदिर और मस्जिद में लुटाते लाख पर अफ़सोस,

नही लेकिन दिया कुछ भी कभी लाचार की  ख़ातिर|

 

बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,

मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की  ख़ातिर|

 

बता तू सरफिरा है या कोई मजनूं बना बैठा,

कड़कती धूप में जलता है बस दीदार की  ख़ातिर|

 

चली आती वो दौड़े ख़ुद जो तुमसे प्यार करती तो,

गँवाता जान क्यूँ ‘मिंटू’ तू ऐसे यार की  ख़ातिर|

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 10:24am

बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,

मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की  ख़ातिर|---वाह्ह्ह्ह  वाह 

सुन्दर ग़ज़ल कही आ० मिंटू जी हार्दिक बधाई 

 

 

Comment by रामबली गुप्ता on April 10, 2016 at 7:07pm
वाह वाह आदरणीय मिंटू जी बहुत ही सुंदर गज़ल हुई है।सादर बधाई स्वीकार करें

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