For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22  22  22  22 

खंजर या तलवार नहीं हूँ

मैं घातक हथियार नहीं हूँ

अपनी शर्तों पर जीती हूँ

क्यूँ कहते खुद्दार नहीं हूँ

मैं नदिया की शीतल धारा

जलता सा अंगार नहीं हूँ

ईश्वर की अनमोल कृति हूँ

औरत हूँ लाचार नहीं हूँ

उज्जवल रश्मि हूँ सूरज की

रातों का अंधियार नहीं हूँ

स्वाभिमान मुझे है प्यारा

मैं दुनिया में भार नहीं हूँ

मुझसे ही परिवार है रोशन

मैं उजड़ा  बाजार नहीं हूँ 

रमा वर्मा 

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 20, 2016 at 5:09pm
सुस्वागतम अभिनंदन आदरणीया रमा वर्मा जी, आपकी बहुत सारी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ता रहा हूँ। इस मंच पर ग़ज़ल कहने के इस शानदार प्रयास का स्वागत है। सम्मान्य सुधीजन के सुझावों पर ध्यान देने के बाद आपकी दूसरी बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने का अवसर मिला। सादर हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Shyam Narain Verma on March 18, 2016 at 5:45pm
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Rama Verma on March 18, 2016 at 4:00pm

सभी साहित्य मनीषियों को मेरा सादर नमस्कार, सबसे पहले तो देर से उपस्थित होने के लिए आप सबसे क्षमा चाहती हूँ , आप सबकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद , आपकी समीक्षा निश्चित ही मेरी लेखनी को सुदृढ़ बनाएगी , मंच पर सदस्य बनने  के बाद ये मेरी पहली पोस्ट है , मैं सुधार करने का प्रयास करुँगी | हार्दिक आभार संग नमन ...

Comment by Rahul Dangi Panchal on March 17, 2016 at 3:26pm
आदरणीय शुक्ला जी आपने सही कहा कुछ जगह बह्र खारिज है कुछ जगह तकाबुले रदीफ है और कई शे'र अपना अर्थ के लिए स्वतंत्र नहीं है आदरणीया रमा जी ने बेशक ग़ज़ल लिखने की कोशिश है परन्तु फिलहाल मुझे यह ग़ज़ल कम एक अच्छी कविता ज्यादा प्रतीत हुई बहुत कम मेहनत से आ. रमा जी इसे ग़ज़ल का सही रूप दे सकती है। ऐसा मैंनें इसलिए ही कहा था कि रमा जी ग़ज़ल को और अच्छी तरह समझने की कोशिश करे और मंच पर अब बार एक अच्छी ग़ज़ल रखे।

आदरणीय रमा जी इसे आप अन्यथा बिल्कुल न लेना ।
नमन!
Comment by Ravi Shukla on March 17, 2016 at 3:10pm

आदरणीय रमा जी बधाई इस गजल के लिये हमें तो इसका शिल्‍प गज़ल का ही लग रहा है बह्र है काफिया है एक विचार भी है इसमें फिर इसको गजल क्‍यो न कहा जाए । ये ठीक है कि इसमें कुछ स्‍थानों पर बह्र खारिज हो रही है । दूसरे और चौथे शेर में ताकबुले रदीफेन का दोष भी है ।

है स्‍वाभिमान मुझको प्‍यारा

मैं दुनिया में भार नहीं हूँ  ऐसे कर के इस के उला को बह्र में किया जा सकता है

आदरणीय राहुल जी आप इसमें गजल के किन तत्‍वों की कमी मानते है अवश्‍य साझा करें । जानकारी बढ़ेगी । सादर

Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 1:24pm
ग़ज़ल के शिल्प कई जगह भंग हैं किन्तु रचना भावपूर्ण है।बधाई स्वीकार करें। सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 16, 2016 at 7:49pm

आ० डांगी भाई जी, बेशक गज़ल बढ़िया है, दाद कुबूल करे....किंतु.....

//

ईश्वर की अनमोल कृति हूँ

औरत हूँ लाचार नहीं हूँ//  के उला में बह्र पुन: देख ले.  सादर

Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 6:15pm
मोहतरमा रमा वर्मा जी आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूं, इस बढ़िया ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 12:55pm
इस मंच पर ग़ज़ल के विषय में बहुत सी जानकारी उपलब्ध है
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 12:54pm
आदरणीया रमा वर्मा जी बहुत ही सुन्दर रचना है परन्तु यह ग़ज़ल नहीं हो सकती इसे आप एक कविता कह सकते है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
12 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
36 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
39 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
40 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service